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४२८. गोखलेका सेवा-मंत्र

[ जनवरी २७, १९१९][१]

महात्मा गोखलेका गिरमिट प्रथा सम्बन्धी कार्य उनकी तन्मयताकी जैसी झाँकी कराता है, वैसी दूसरा कोई कार्य नहीं कराता । उनका दक्षिण आफ्रिकाका प्रवास[२]और उसके बाद उनके द्वारा भारतमें चलाया गया आन्दोलन अपने कार्यमें तन्मय हो जानेकी उनकी शक्तिका हमें सुन्दर दर्शन कराते हैं। उनकी इस शक्तिको ध्यान में रखकर ही मैंने अनेक बार कहा है कि हम उनके कार्यों में छिपी हुई धर्मवृत्तिको देख सकते थे ।

अब हम उनके दक्षिण आफ्रिकाके कार्यकी थोड़ी जाँच करें। जब उन्होंने दक्षिण आफ्रिका जानेका अपना इरादा जाहिर किया, तब भारत सरकारके अधिकारियोंमें खलबली मच गई। गोखले जैसे व्यक्तिका अपमान दक्षिण आफ्रिकामें हो तब तो बहुत बुरी बात होगी । दक्षिण आफ्रिका जानेका विचार वे छोड़ दें तो कितना अच्छा हो । परन्तु उनसे ऐसा कहनेका साहस कौन करे ? दक्षिण आफ्रिका जाना क्या चीज है, इसका अनुभव गोखलेको इंग्लैंडमें ही हो गया था। उन्होंने अपने लिए टिकट मँगवाया, लेकिन यूनियन कैसल कम्पनीके अधिकारियोंने उनकी कोई परवाह नहीं की । यह खबर इंडिया ऑफिस- में पहुँची। इंडिया ऑफिसने यूनियन कैंसल कम्पनीके मैनेजर सर ओवन ट्यूडरको कड़ी हिदायत दी कि कम्पनीको गोखलेका उनकी प्रतिष्ठाके अनुरूप मान-सम्मान करना चाहिए। इसका नतीजा यह हुआ कि गोखले एक सम्मान्य मेहमानकी तरह स्टीमरमें प्रवास कर सके। मुझसे इस घटनाकी चर्चा करते हुए उन्होंने कहा था, "मुझे अपने व्यक्तिगत मान-सम्मानकी बिलकुल परवाह नहीं, लेकिन देशका सम्मान मुझे प्राणोंके समान प्यारा है । और इस समय में एक सार्वजनिक व्यक्तिके नाते जा रहा था, इसलिए मेरा अपमान हिन्दुस्तानके अपमानके बराबर है, ऐसा मानकर मैंने स्टीमरमें ऐसी सुविधाएँ प्राप्त करनेका प्रयत्न किया जिनसे मेरे सम्मानकी रक्षा हो सके। " यह घटना घटी इस- लिए इंडिया ऑफिसने कलोनियल ऑफिसके मारफत ऐसी व्यवस्था की थी कि दक्षिण आफ्रिका में भी गोखलेका पूरा सत्कार हो। इसलिए संघ सरकारने पहलेसे ही गोखलेके आदर-सत्कारका प्रबन्ध कर रखा था । उनके लिए एक विशेष रेलवे संलन तैयार करा रखा था । और यात्रामें रसोइये आदिका भी बन्दोबस्त किया था । उनकी देखभालका काम एक सरकारी अधिकारीको सौंपा गया था । भारतीयोंने तो किसी बादशाहको भी नसीब न हो ऐसा मान उन्हें देनेका जगह-जगह प्रबन्ध कर रखा था । गोखलेने संघ सरकारकी मेहमानदारी तो केवल संघकी एक राजधानी प्रिटोरियामें ही स्वीकार की ।

 
  1. धर्मात्मा गोखले पुस्तकमें, जहाँसे यह लेख लिया गया है, लेखको इसी वर्षका माना गया है ।
  2. गोखले दक्षिण आफ्रिका अक्तूबर-नवम्बर १९१२ में गये थे, देखिये खण्ड ११ ।