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गोखलेका सेवा-मंत्र ५१३

बाकी सारे स्थानोंमें वे भारतीय समाजके ही मेहमान रहे । केप टाउनमें प्रवेश करते ही उन्होंने दक्षिण आफ्रिकाके प्रश्नका विशेष अध्ययन शुरू कर दिया। इस विषयका जो सामान्य ज्ञान प्राप्त करके वे केप टाउनमें उतरे थे, वह भी कोई ऐसा—वैसा नहीं था। परन्तु उनकी दृष्टिमें वह काफी नहीं था। दक्षिण आफ्रिकाके अपने चार सप्ताहके निवासकालमें उन्होंने वहाँके हिन्दुस्तानियोंके प्रश्नका इतना गहरा अध्ययन किया कि जो भी उनसे मिलने आते वे गोखलेके इस ज्ञानसे चकित हो जाते थे।

जब जनरल बोथा और जनरल स्मट्ससे मिलनेका समय आया, तब उन्होंने इतनी ज्यादा टिप्पणियाँ तैयार करवाई कि मुझे लगता था कि इतना अधिक परिश्रम ये किसलिए कर रहे हैं। सारे समय उनकी तबीयत नाजुक ही रहीं; उन्हें बहुत ज्यादा सारसँभालकी जरूरत थी। परन्तु ऐसी नाजुक तबीयत होते हुए भी रातके बारह— बारह बजेतक वे काम करते रहते और सवेरे फिर दो बजे या चार बजे उठकर कागज—पत्रोंकी माँग करते थे । इसके फलस्वरूप जनरल बोथा और जनरल स्मट्सके साथ हुई उनकी मुलाकात से ही गिरमिटिया मजदूरोंपर लगनेवाले ३ पौंडी वार्षिक करके खिलाफ की गई सत्याग्रहकी लड़ाईका[१] जन्म हुआ । यह कर सन् १८९३ से गिरमिट प्रथासे मुक्त हुए पुरुषों, उनकी स्त्रियों और उनके लड़कों—लड़कियोंपर लगता था । यदि गिरमिटसे मुक्त हुआ पुरुष यह कर देना स्वीकार न करे, तो संघ सरकारका कानून उसे वापिस हिन्दुस्तान लौटनेके लिए मजबूर करता था। इसलिए गिरमिटमें, सच पूछा जाये तो, गुलामीमें फँसे हुए भारतीयकी दशा बड़ी विषम हो गई थी। अपना सब- कुछ त्यागकर स्त्री—बच्चोंके साथ दक्षिण आफ्रिका आया हुआ वह हिन्दुस्तान लौटकर भला क्या करे? यहाँ तो उसके नसीबमें भुखमरी ही बदी थी। और जीवनभर गिरमिटकी गुलामी में भी कैसे रहा जाये? उसके आसपासके स्वतन्त्र आदमी जब महीनेके ४ पौंड, ५ पौंड या १० पौंड तक कमाते हों, तब वह महीने में केवल १४—१५ शिलिंग लेकर कैसे सन्तुष्ट रहे? और अगर वह गिरमिटसे मुक्त होकर स्वतन्त्र मनुष्यकी तरह जीवन बिताना चाहे और मान लीजिए कि उसके एक लड़का और एक लड़की हो, तो स्त्री—बच्चों सहित उसे प्रतिवर्ष १२ पौंडका कर देना पड़ता था, इतना भारी कर वह कैसे भरे? यह कर लागू किया गया तभीसे इसके खिलाफ भारतीय लोग जबरदस्त लड़ाई लड़ रहे थे। हिन्दुस्तानमें भी इसकी प्रतिक्रिया उत्पन्न हुई थी। परन्तु अभीतक यह कर रद नहीं हुआ था। अनेक माँगोंमें गोखलेको यह कर रद करनेकी माँग भी संघ सरकारके समक्ष रखनी थी। इस अन्यायसे वे इस तरह आगबबूला हो उठे थे कि मानो अपने गरीब देशबन्धुओंपर पड़नेवाला करका बोझ खुद उन्हीं पर पड़ रहा हो। जनरल बोधाके समक्ष उन्होंने अपनी आत्माकी सम्पूर्ण शक्तिका प्रयोग किया। जनरल बोथा और जनरल स्मट्सपर उनकी बातोंका ऐसा प्रभाव पड़ा कि वे पिघल गये और उन्होंने यह वचन दिया कि संघ संसदकी आगामी बैठकमें यह कर रद हो जायेगा। गोखलेने यह खुशखबरी मुझे बड़े हर्षसे सुनाई थी। कुछ दूसरे वचन भी इन अधिकारियोंने दिये थे। परन्तु इस समय हम केवल गिरमिटके

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  1. देखिए खण्ड १२ ।