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परिशिष्ट

सफल होने तक उनका पालन करते जाना चाहिए अथवा हमें तुरन्त उनका उल्लंघन करना चाहिए ।

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लोग सोचते हैं कि यदि हम प्रतिरोध करें तो जिस बुराईका प्रतिरोध किया जायेगा यह प्रतिरोध उससे भी निकृष्ट रूप धारण कर लेगा । किन्तु प्रतिकारको बुराईसे भी अधिक बुरा बन जाने देनेमें गलती सरकारकी है। वह क्यों पहले ही से इसका अनुमान लगाकर इस बातकी गुंजाइश नहीं कर रखती कि उसमें सुधार किया जा सके ?

लोग चोट करें इसके पहले ही वह चिल्लाना शुरू कर देती है और [ अँगुली उठाने—वालोंका ] प्रतिरोध करने लगती है। इसके बजाय वह नागरिकोंको ऐसे दोषोंके प्रति सतर्क रहनेके लिए तथा ज्यादा अच्छा कुछ करनेके लिए प्रोत्साहित क्यों नहीं करती ? वह ईसामसीहको सदैव शूलीपर क्यों चढ़ाती है, क्यों कोपरनिकस और लूथरको बहिष्कृत करती है, और क्यों वाशिंगटन तथा फ्रैंकलिनको गद्दार घोषित करती है ?

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यदि अन्याय सरकारी यन्त्रके अनिवार्य घर्षणका अंग ही है तो इसे चलने दीजिए, चलने दीजिए; घिसते घिसते शायद वह हमवार हो जाये -निःसन्देह, यन्त्र तो घिस ही जायेगा। यदि इस अन्यायको यन्त्रके ही किसी पुर्जेस्प्रिंग, गरारी, रस्सी या क आदिका सहारा मिल गया है [ और इसलिए स्थायी हो गया है ] तो इस बात पर विचार किया जा सकता है कि उसका प्रतिकार और बड़ी बुराईका कारण तो नहीं बन जायेगा; किन्तु यदि वह आपको दूसरेपर अन्याय करनेका एक साधन बनने पर बाध्य करे तो मैं कहता हूँ आप उस कानूनको तोड़ डालिये ।

जहाँतक बुराईको दूर करनेके लिए राज्य द्वारा मुहय्या किये गये तरीकोंको अपनाने का सवाल है मैं ऐसे तरीकोंको नहीं जानता । उनमें बहुत वक्त लगता है; आदमीकी पूरी जिन्दगी उनमें ही लग जाये। मुझे दूसरे काम भी करते हैं। में इस दुनियामें खास तौर पर इसलिए नहीं आया हूँ कि मैं इसे अच्छी तरह रहने योग्य जगह बनाऊँ, बल्कि इसलिए आया हूँ कि वह जैसी कुछ भी है उसमें रहूँ। आदमीको सब-कुछ नहीं, कुछ करना आवश्यक होता है। और अगर वह सब कुछ नहीं कर सकता तो यह जरूरी नहीं हो जाता कि वह कोई-न-कोई गलत काम करे । गवर्नर या विधान सभाके पास मुझे अर्जी भेजनेकी जरूरत नहीं है — उसी तरह जिस तरह गवर्नर या विधान सभाको मेरे पास भेजने की जरूरत नहीं। यदि मैं अर्जी दूँ और वे मेरी अर्जी न सुनें तो मुझे क्या करना चाहिए। इस सम्बन्धमें राज्यने कोई उपाय नहीं बताया। उसका संविधान स्वयं एक बुराई है। हो सकता है कि मेरी यह बात कठोर, दुराग्रहयुक्त और अमैत्रीपूर्ण लगे; किन्तु जो उसकी कद्र कर सकता है और जो उसका पात्र है उसके लिए तो यही अनुकम्पायुक्त और विचारपूर्ण है। ऐसे ही सभी परिवर्तन शरीरमें उथल-पुथल मचाने- वाले जन्म-मरणके समान अकल्याणकारी ही होते हैं ।

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