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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अमेरिकी सरकार या उसकी प्रतिनिधि राज्य सरकारसे वर्षमें एक बार, बस एक ही बार, मेरी आँखें चार होती हैं और वह उस समय जब कर-संग्राहकके रूपमें वह मेरे पास आती है। मेरी जैसी स्थितिका व्यक्ति उससे इसी प्रकार मिल सकता है, मेरे और उसके मिलनेका कोई अन्य अवसर होता ही नहीं । उस समय वह साफ- साफ कहती है, मुझे पहचानो । आजकी हालत में अनिवार्य रूपसे उसके साथ उस क्षण व्यवहार करनेका सबसे सीधा प्रभावकारी तथा उसके प्रति अपना असन्तोष और क्रोध प्रकट करने का तरीका है, उसे पहचानने से इनकार कर देना ।

मुझे इसमें कोई शक नहीं है कि अगर एक हजार, बल्कि एक सौ, या दस - मेरे मनके केवल दस ईमानदार आदमी, यहाँ तक कि केवल एक ही ईमानदार आदमी [ दास-प्रथाका विरोध करनेपर ] जेलमें बन्द कर दिया जाये तो अमेरिकामें इस प्रथाका अन्त हो जाये । प्रारम्भमें कदम चाहे कितना ही छोटा क्यों न उठाया जाये यदि वह एक बार अच्छी तरह सोच-समझकर सम्यक् रूपसे उठाया गया है तो फिर उसके परिणामोंका सिलसिला अटूट सिद्ध होता है...।

जो किसी भी व्यक्तिको अन्यायपूर्वक जेलमें डालती है, ऐसी सरकारके अधीन न्यायपरायण व्यक्तिके लिए वास्तविक स्थान जेल ही है । मैंसेच्युसेट्सके पास अपने अपेक्षाकृत स्वतन्त्र और वीर नागरिकोंके लिए जेलके सिवा कोई दूसरा स्थान नहीं है। उन्होंने अपने सिद्धान्तोंके कारण अपने-आपको राज्यसे विलग कर लिया है। उसी तरह राज्य भी उन्हें अपनी ही कृतिके द्वारा जेलमें डालकर और ताला लगाकर अपनेसे दूर कर दे । उनके लिए यही गति ठीक है। गुलामोंकी इस बस्ती में जेल ही एक ऐसी जगह है जहाँ आजाद आदमी इज्जतके साथ रह सकता है। ...। यही वह विच्छिन्न किन्तु अपेक्षाकृत स्वतन्त्र और प्रतिष्ठित आवास है जहाँ राज्य उन व्यक्तियोंको ला रखता है जो उसके साथ नहीं हैं बल्कि विरोधमें हैं। यदि किसीका यह खयाल हो कि यहाँ बन्द करनेपर राज्यमें उनका प्रभाव खत्म हो जायेगा, उनकी चीख-पुकार राज्यके कान नहीं खायेगी, और वे दुर्गमें प्रविष्ट शत्रुकी तरह भयंकर सिद्ध नहीं होंगे, तो कहना पड़ेगा कि वे यह नहीं जानते कि सत्य झूठकी अपेक्षा कितना अधिक शक्तिशाली है और न वे यह जानते हैं कि जिसने अपनी आत्माका किंचित् भी साक्षात्कार कर लिया है वह अन्यायका मुकाबला ऐसी अवस्था में और भी कितनी अच्छी तरह कर सकता है।... यदि इस वर्ष एक हजार आदमी कर न दें तो वह कार्य उतना हिंसक या क्रूर नहीं कहला सकता जितना कर देकर सरकारको हिंसा करने तथा निर्दोषोंका रक्त बहानेके लिए समर्थ बनाने में होगा । यदि शान्तिपूर्ण क्रान्तिकी कोई परिभाषा है तो वास्तवमें वह यही है । यदि कोई कर-संग्राहक अथवा अन्य कोई सार्वजनिक अधिकारी मुझसे पूछे जैसा कि एकने पूछा भी "किन्तु मैं क्या करूँ", तो मेरा उत्तर होगा, “यदि वास्तवमें तुम कुछ करना चाहते हो तो अपने कामसे इस्तीफा दे दो ।" यदि प्रजाजन राज-भक्तिसे इनकार कर दे और अधिकारी अपने पदसे त्यागपत्र दे दे तो क्रान्ति सम्पूर्ण हो जाती है। किन्तु यदि यह भी मान लें कि क्रान्तिमें रक्त बहेगा तो क्या जब किसीकी अन्तरात्मा घायल होती है तब क्या वह भी एक तरहका रक्तका बहना नहीं है ? यह तो ऐसा घाव है जिससे आदमीकी आदमीयत घायल हो जाती है, उसकी आत्मा धीरे-धीरे क्षीण होती जाती