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परिशिष्ट

है और वह बिलकुल मिट्टी में मिल जाता है । मैं देखता हूँ कि यह रक्त तो आज भी बह रहा है ।

मैंने अपराधी के लिए उसका माल छीननेके स्थानपर कैदकी अपेक्षा की है- यद्यपि दोनोंसे उद्देश्य एक ही सिद्ध होगा- क्योंकि जो लोग विशुद्ध सत्यका आग्रह करते हैं और इसलिए जो किसी भी भ्रष्ट राज्यके लिए अत्यधिक खतरनाक होते हैं वे आम तौरपर सम्पत्तिका संग्रह करने में समय नष्ट नहीं करते - वे प्रायः निष्कांचन होते हैं...।

मैंने छः वर्षोंतक व्यक्ति कर नहीं दिया । इस कारण मुझे एक बार एक रातके लिए जेलमें रखा गया। में जब ठोस पत्थरकी दो या तीन फुट चौड़ी दीवार, लोहे और लकड़ीके एक फुट मोटे किवाड़ तथा प्रकाशको अवरुद्ध कर देनेवाली लोहेकी जालीके पीछे बन्द कर दिया गया तो मुझे उस संस्थानकी मूर्खतापर आश्चर्य हुए बिना न रहा जिसने मुझे केवल रक्त, मांस और हड्डियोंका ढांचा मानकर, कैद कर दिया था। मैं हैरान हो गया कि अन्तमें मुझे जेलमें डालने की अपेक्षा मेरा कोई अच्छा उपयोग उसे क्यों नहीं सूझा ? और उसने कभी मेरी सेवाओंको किसी प्रकार उपयोगमें लानेकी बात क्यों नहीं सोची ? मेरी समझमें आ गया कि मेरे और मेरे नगर-निवासियोंके बीच जो पत्थरकी दीवार खड़ी है, उससे भी मजबूत एक दीवार मेरे नगर- निवासियोंको घेरे है जिसे लाँघना या तोड़ना उनके बसकी बात नहीं। मुझे एक क्षणके लिए भी यह नहीं लगा कि मैं कैदमें हूँ; मुझे लगा कि दीवारें केवल पत्थरों और गारे-चुनेका अपव्यय हैं। मुझे ऐसा भी प्रतीत हुआ कि मेरे नगर-निवासियों में से जैसे केवल मैंने ही कर चुकता किया हो । यह तो स्पष्ट है कि उन्हें मेरे साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए सो मालूम ही नहीं था । उन्होंने मेरे साथ असभ्योंकी तरह व्यवहार किया। उन्होंने मुझे जो भी धमकी दी या मेरी जो कुछ भी प्रशंसा की, भूलसे भरी हुई थी; क्योंकि उनकी समझमें जेलके बाहर रहना मेरी परम लालसा थी। बड़ी खटपट करके मेरी कोठरी में ताला लगाकर वे समझे कि उन्होंने मेरे चिन्तन पर ताला लगा दिया है। मुझे उनकी इस समझपर हँसी आई । किन्तु मेरा चिन्तन तो बिना किसी रुकावटके उनके पीछे लगा ही रहा; और मेरा चिन्तन ही वास्तवमें खतरनाक था। चूँकि वे मेरी आत्मातक नहीं पहुँच सकते थे, उन्होंने मेरे शरीरको पीड़ा पहुँचानेका निश्चय किया; ठीक बच्चोंके समान । बच्चे जिस व्यक्तिसे डाह रखते हैं यदि उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकते तो उसके कुत्तेको चोट पहुँचायेंगे । मैंने समझ लिया कि शासन सिड़ी है; वह एक धनिक विधवाके समान कायर भी है । वह यह नहीं जानता कि कौन मित्र है और कौन शत्रु। इसलिए इसके प्रति मेरा रहा सहा आदर भी चला गया ।

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कर का जो बिल आता है उसकी किसी खास मदके कारण मैं उसे चुकानेसे इनकार करता हूँ, ऐसी बात नहीं है । मैं तो राज्यके प्रति भक्ति भावसे ही इनकार करना चाहता हूँ और उससे अपनेको एकदम कारगर रूपसे अलग कर लेना चाहता