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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हूँ। मेरे दिये हुए पैसेका, अन्तमें जाकर वह किसी आदमीको खरीदने के या किसी की हत्या करनेके लिए बन्दूक खरीदनेके काम आये, उसके पहले क्या-क्या होता है, इसकी छान-बीन में, वह सम्भव हो तो भी, मैं नहीं पड़ना चाहता । पैसा अपने-आप में तो निर्दोष है। लेकिन मैं इस बातकी खोज-खबर तो रखना चाहता हूँ कि मेरी निष्ठाका कहाँ क्या प्रभाव हो रहा है। वस्तुतः इस तरह में अपने ढंगसे चुपचाप राज्यके विरुद्ध युद्धकी घोषणा करता हूँ, वैसे इसके बाद भी जैसा कि ऐसे मामलोंमें होता है, में यह देखूँगा कि राज्यका क्या उपयोग किया जा सकता है और में उससे क्या लाभ उठा सकता हूँ ।

यदि मुझसे माँगा जानेवाला कर राज्यके प्रति सहानुभूति रखनेके कारण दूसरे लोग दे दें तो जिस तरह अपना कर चुकाकर उन्होंने गलत काम किया है इसी तरह उनका यह काम भी गलत होगा; बल्कि यह उससे भी बुरी बात है; यह तो राज्यको, राज्य अपने अन्यायमें जितनी सहायताकी माँग करता है, उससे भी ज्यादा सहायता देना है। यदि वे किसी करदातामें अपनी गलत वैयक्तिक दिलचस्पी या उसकी सम्पत्तिकी सुरक्षा अथवा उसे जेल जानेसे बचाने के लिए कर देते हैं तो यही कहना होगा कि उन्होंने पूरी तरह इस बातपर विचार नहीं किया कि उनकी ऐसी निजी भावनाएँ सार्वजनिक हितके कहाँतक आड़े आती हैं।

तो, मेरी इस समय यह स्थिति है । किन्तु आदमीको ऐसे मामलोंमें बहुत ही अधिक सावधान रहना चाहिए; ऐसा न हो कि उसके कार्यों में दुराग्रह अथवा दूसरे विचारोंके प्रति अनुचित आदर-भाव आ जाये। जो केवल उसका कर्त्तव्य है वह वही करे और युग-धर्मको पहिचाने ।

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जिन लोगोंको सत्यके अपेक्षाकृत अन्य पवित्र स्रोतोंका पता नहीं है, जो उसकी धाराके ऊपर चढ़कर उसके उद्गम तक नहीं पहुँचे वे 'बाइबिल ' या संविधानके तीरपर खड़े रहते हैं और ऐसा करने में उनकी बुद्धिमत्ता है । वे श्रद्धापूर्वक उस तीर्थोदकका पान करते हैं। किन्तु जो लोग जानते हैं कि इस सरोवर या उस तड़ागमें वह पुण्यजल संचित कहाँसे होता है, वे एक बार फिर अपनी कमर बाँधकर उस तक पहुँचनेके लिए यात्रा आरम्भ कर देते हैं ।

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ऐसी सरकार भी, जिसकी सत्ताके सामने झुकनेके लिए तैयार हो जाऊँ -- क्योंकि मैं खुशीसे उन लोगोंके आदेशका पालन कर सकता हूँ जो मुझसे ज्यादा जानते हों, और मुझसे ज्यादा कुशल हों; और बहुत-सी बातों में तो मैं उन लोगोंके आदेशका पालन भी कर सकता हूँ जो मुझसे ज्ञानमें कम और कर्ममें पीछे हैं -ऐसी सरकार भी निर्दोष नहीं होती । सही अर्थों में न्यायपरायण होनेके लिए उसे शासितोंकी मान्यता और स्वीकृतिका आधार प्राप्त रहना चाहिए। मेरे शरीर और मेरी सम्पत्तिपर उसे कोई विशुद्ध अधिकार नहीं हो सकता; जितना अधिकार मैं उसे दूँगा उतना ही उसे हो सकता है । सम्पूर्ण राजसत्तासे सीमित राजसत्ता, और सीमित राजसत्तासे गण-