पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 15.pdf/५६

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२६. पत्र : गोकुलदास पारेखको'

[१]

[ नडियाद ]
अगस्त १७, १९१८

सुज्ञ भाईश्री,

आपके जून मासके लिखे हुए पत्रपर युद्ध-सम्मेलनका[२]पता होनेके कारण वह मुझे दो दिन पहले ही मिला है। इसलिए आप समझ सकते हैं कि मेरी तरफसे आपको उसकी पहुँच तक क्यों नहीं दी गई है। यद्यपि आपका पत्र मेरे हाथोंमें इतनी देरसे आया है, फिर भी मेरे लिए उसका मूल्य कुछ कम नहीं हो गया है, उतना ही है। मैं, स्वभावतः आपको हमेशा प्रसन्नचित्त ही देखना चाहूँगा। आप प्रसन्न हुए हैं, इसे मैं अपना सौभाग्य समझता हूँ। मैंने यह अनुभव किया है कि खेड़ा जिलेके किसान बहुतसे काम करनेमें समर्थ हैं। इन स्त्री-पुरुषोंके सार्वजनिक सम्पर्क में आकर मैंने बहुत कुछ सीखा है और सीख रहा हूँ। आशा है, आप सकुशल होंगे।

मोहनदास के वन्देमातरम्

[ गुजरातीसे ]
महादेवभाईनी डायरी, खण्ड ४

२७. पत्र : मनसुखलाल रावजीभाई मेहताको

[ नडियाद ]
अगस्त १७, १९१८

भाईश्री मनसुखलाल,

तुम्हारा पत्र आज मिला। मैं तो इस समय भारी बीमारीसे घिरा हूँ, और बिस्तर में पड़ा हुआ हूँ। सम्भवतः इससे छुटकारा पा जाऊँगा। मेरे अपने उपचार जारी ही हैं। मन पूर्ण रूपसे शान्त है। इस बातकी प्रतीति होनेपर कि रोग मेरी मूर्खताके परिणाम स्वरूप ही हुआ है, मैं कम कष्ट अनुभव करता हूँ।

मेरा खयाल है कि इस समय हमारे शिक्षित युवक-वर्गकी दशा दयनीय है । यदि मैं इन्हें सुमार्गपर लानेका कोई उपाय कर सकता हूँ तो इन्हीं दिनों । किन्तु मुझे ऐसा लगता है कि उसके लिए यह उपयुक्त समय नहीं है । यह वर्ग स्वयंजनित मोह सागरमें गोते लगा रहा है । मेरा यह दृढ़ मत है कि वह इस [ अपने पैदा किये ]

  1. १. बम्बई विधान परिषद्के एक सदस्य । देखिए "गोकुलदासका पत्र", महादेवभाईनी डायरी,
  2. १० जून, १९१८ को बम्बई में हुआ था।