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पत्र : मनसुखलाल रावजीभाई मेहताको

मोहमें (?)[१]केवल तिलक और बेसेंटकी[२] नीतिके कारण ही कभी ग्रस्त नहीं हो सकता था । इन दोनों व्यक्तियोंने राजनैतिक मामलोंमें नैतिकताको त्याग दिया है, इतना ही नहीं, बल्कि कभी-कभी वे उसके त्यागको इष्ट भी मानते हैं । " शठं प्रति शाठ्यम्" यह उनका नीतिसूत्र है जिसे उन्होंने ज्ञानपूर्वक प्रकटतः स्वीकार किया है। उनकी नीतिपर आरूढ़ वर्ग के लोगोंको फिलहाल में किसी भी तरह कुछ दे सकता हूँ, ऐसा मुझे प्रतीत नहीं होता । वे मेरे कार्यसे, मेरे लेखों या मेरे भाषणोंसे अप्रत्यक्ष रूपमें जो कुछ ले सकें, ले लें और वे लेंगे ही। किन्तु यदि मैं उन्हें उसे देनेका प्रयत्न करूँगा तो वे इनकार करेंगे और वह ठीक होगा। श्रीमती बेसेंट और तिलक महाराजकी नीति अत्यन्त दोषपूर्ण है, किन्तु उन्होंने जो कार्य किया है वह तो महान् ही है। उनकी सेवाओंका मूल्यांकन नहीं किया जा सकता। देश-प्रेमका मन्त्र युवकोंने उन्हींसे सीख लिया है। अपने इन गुरुओंको वे एकाएक कैसे त्याग दें ? त्याग करनेके लिए मैं उनसे कभी कहूँगा भी नहीं। इसके बावजूद उन्हें पूज्य मानते हुए भी, कभी ऐसा समय जरूर आयेगा, जब यह वर्ग उपर्युक्त नीतिका त्याग कर देगा । भारतके प्राचीन गौरवमें मुझे इतना गहरा विश्वास है । यहाँ कौरवोंकी जीत नहीं हुई, बल्कि पाण्डवोंकी हुई है । और ये पाँच मनुष्य ऐसे थे, जो लाखों व्यक्तियोंका सामना करनेके लिए पर्याप्त थे, ऐसा माना गया है । यह बात मेरी कल्पनाके बाहर है कि इस देशका युवक वर्ग ' शठं प्रति शाठ्यं' जैसी कुत्सित नीतिको अपनाये। मैं धीरज रखकर बैठा रहूँगा । मैं तो इन दोनों व्यक्तियोंसे भी प्रार्थना कर रहा हूँ, परन्तु इन सब कामोंमें मुझे तो अपनी ही पद्धतिका प्रयोग ही करना है। इसमें कभी-कभी तो बहुत ढील होती दिखाई देती है; किन्तु वह अनिवार्य है । कुछ कार्य पर्देके पीछे किये जाते हैं और होने ही चाहिए । मैंने इस बार कांग्रेस में न जानेका निश्चय किया है और वह [ भी ] उक्त कारणोंसे ही । मैं नरम [ मॉडरेट ] दलके सम्मेलनमें भी नहीं जाना चाहता। मेरे न जानेसे ही जनपक्षको चोट पहुँचेगी। जब सब लोग प्रश्न करने लगेंगे, तब यदि जरूरत मालूम भी हुई तो मैं अपना मत प्रकट करूँगा ।

अब तुम्हें बहुत लिख दिया । यह पत्र छापनेके लिए नहीं है; तुम्हारे ही विचार करनेके लिए है ।

मोहनदासके वन्देमातरम्

[ गुजरातीसे ]
महादेवभाईनी डायरी, खण्ड ४


  1. उपर्युक्त स्थल स्पष्ट नहीं है, जैसा कि मूलमें दिये गये प्रश्न-चिह्नसे प्रकट है ।
  2. एनी बेसेंट (१८४७-१९३३); थियोसोफिकल सोसाइटीकी अध्यक्षा बनारसके केन्द्रीय हिन्दूकॉलेजकी संस्थापिका और १९१७ के कांग्रेस अधिवेशनकी अध्यक्षा ।

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