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२८. पत्र : शंकरलाल बैंकरको

[ नडियाद ]
अगस्त १७, १९१८

भाईश्री शंकरलाल,

तुम्हारा पत्र मिला । मेरी तबीयत अभी भी बिलकुल ठीक नहीं हुई है। डर है कि समय लेगी । मैंने स्थितिको जितनी गम्भीर समझा था, उससे कहीं अधिक गम्भीर हो गई है । तुम चिन्ता न करना । भाई जमनादासके बारेमें मेरे लिए अब कुछ सोचना बाकी नहीं रहा है।श्री विट्ठलभाईने [१] अपने स्वभावके अनुसार ठीक समझकर त्यागपत्र वापस लेनेकी सलाह दी है। मेरी सलाह तो यही है कि चाहे जितना क्षोभ पैदा हो उन्हें उसका सामना करना चाहिए और त्यागपत्र [ देनेके अपने निश्चय ] पर कायम रहना चाहिए। हममें जो बात हुई थी वह आपको याद होगी । मेरी राय यह नहीं है कि भाई जमनादास काम छोड़ दें। किन्तु भाई जमनादासको बड़ी जिम्मेदारीका पद जरूर छोड़ देना चाहिए। इसमें स्वकल्याण और लोक-कल्याण दोनों ही हैं। इससे कांग्रेस- को कोई हानि न पहुँचेगी। आज तक हमारी अपनी ही भूलोंसे कांग्रेसको एकके-बाद-एक जो हानियाँ पहुँचती रही हैं, उनका विचार हम क्यों न करें ? अब एक सीधे कार्यसे क्या विशेष हानि पहुँचेगी ? भाई जमनादास अपने निश्चयपर कायम रहेंगे, तो उनकी सेवाशक्ति बहुत बढ़ जायेगी । तुम दृढ़ रहना और जमनादासको दृढ़ बनाना । माजीको मेरा प्रणाम कहना ।

मोहनदासके वन्देमातरम्

[ गुजरातीसे ]
महादेवभाईनी डायरी, खण्ड ४


  1. विठ्ठलभाई ज० पटेल (१८७३-१९३३); सरदार वल्लभभाई पटेलके बड़े भाई; १९०८ में वकालत पास की; बम्बई विधान परिषद् तथा शाही परिषद के सदस्य; भारतीय विधान सभा के प्रथम निर्वाचित अध्यक्ष (१९२५-३० )।

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