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२९. पत्र : देवदास गांधीको

[ नडियाद ]
अगस्त १७, १९१८

चि० देवदास,

तुम्हारी हिन्दी - कक्षाका दो महीनेका कार्य-विवरण पढ़ लिया और उससे सन्तोष हुआ। तुम्हें यह कार्य इतना भा गया है, मानो तुम इसीके लिए पैदा हुए हो और इसके लिए तुम इतने योग्य प्रमाणित हुए हो कि तुम्हारी जगह दूसरा आदमी रखना मुश्किल हो गया है । दूसरा कोई [ तुमसे कुछ ] अधिक कर सकेगा, ऐसा मुझे नहीं लगता। ईश्वर तुम्हारा निश्चय दृढ़ रखे। तुम अपना स्वास्थ्य बनाये रखो और दीर्घ जीवी बनो, ताकि मद्रास प्रदेश भारतीय एकताके सुरोंसे गूंज उठे, एवं इस समय दक्षिण और उत्तरके बीच जो चौड़ी खाई पैदा हो गई है, वह पट जाये और दोनों स्थानोंके लोग परस्पर घुल-मिल जायें। इस कामको जो आदमी करेगा, वह इतने से ही अमरत्व प्राप्त कर लेगा। ईश्वर करे, तुम इस पदको प्राप्त करो। तुम योग्य हो । किसी भी कारणसे काम न छोड़ना । दिन-प्रतिदिन अपना हिन्दीका ज्ञान बढ़ाते जाना और अपने चरित्रको दृढ़ बनाना। जो व्यक्ति सत्यवान्, ब्रह्मचारी, अपरिग्रही, दयावान् और शूरवीर होगा, उसका प्रभाव सारी पृथ्वीपर पड़ेगा। तुम उस प्रभावसे लोगोंको इकट्ठा कर सकोगे और फिर उन्हें आसानीसे हिन्दीका ज्ञान दे सकोगे । जब मेरे विचार ऐसे हैं, तब मेरे लिए तुम्हें लड़ाईमें भेजनेका विचार करना कैसे सम्भव है ? तुम वहाँ अपना काम कर रहे हो यह लड़ाईमें जानेके बराबर ही है । तुम धीरज न छोड़ना । तुमसे लड़ाई में शामिल न हुआ जा सके तो इसकी कोई चिन्ता नहीं। मैं तुम्हारे दूसरे भाइयोंको भी कैसे भेजूँ ? हरिलाल तो तुम्हारा भाई रहा ही नहीं, मणिलाल आ नहीं सकता, रामदास आये तो मैंने उसे पत्र लिखकर बुलाया है। यदि तुम प्रातःस्मरण और संध्याके नियमका पालन नहीं करते हो तो उसे अब आरम्भ कर देना । वह तुम्हारा बहुत बड़ा अवलम्ब है, यह निश्चित जानो । जो व्यक्ति या छोड़ देता है, वह बहुत बड़ी चीजको खो लहरें हम सबको प्लावित कर रही हैं शामकी प्रार्थना है, बशर्ते कि यह बात आचरण किया जाये । राष्ट्र लाखों वर्ष पुरानी प्रथाको बिना कारण बैठता है । आधुनिक कालमें विशाल समुद्रकी उनमें डूबनेसे बचनेका एकमात्र उपाय सुबह समझमें आ जाये, और उसपर ज्ञानपूर्वक

बापूके आशीर्वाद

[ गुजरातीसे ]
महादेवभाईनी डायरी, खण्ड ४


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