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३१. पत्र : बी० चक्रवर्तीको[१]

अगस्त २५, १९१८

प्रिय श्री चक्रवर्ती[२]

आपका पत्र मिला । धन्यवाद । मैं कांग्रेससे अलग रहता हूँ, क्योंकि मैं जानता हूँ कि मेरे विचार उसके मुख्य-मुख्य नेताओंको मान्य नहीं हैं। मैंने अपनी स्थितिकी चर्चा श्रीमती बेसेंट के साथ की थी। वे मुझसे सहमत हो गई थीं कि मुझे अलग रहना चाहिए । मैं नरम दलवालोंके सम्मेलनमें भी मौजूद नहीं रहूँगा । मैं मानता हूँ कि यदि हम केवल सैनिक भरतीका काम हाथमें ले लें, तो यही देशकी सबसे बड़ी सेवा होगी। मैं जिस हद तक जाता हूँ, वहाँ तक जानेके लिए कोई भी दल तैयार नहीं होगा। फिर मॉण्टेग्यु - चैम्सफोर्ड योजनाके सिद्धान्त तो मैं स्वीकार करता हूँ, eपरन्तु उसमें कुछ कमसे कम सुधार साफ तौरपर सुझाऊँगा । और उनपर अमल करानेके लिए मरते दम तक लड़ेंगा । नरम दलवाले अवश्य ही इसके लिए तैयार नहीं हैं। गरम दलवाले एक हद तक तैयार तो हो सकते हैं, किन्तु मैं जिस अर्थमें चाहूँ, उस अर्थ में नहीं । इसलिए मेरा खयाल है कि दोनों दलोंको इकट्ठा करनेके मामलेमें मुझे इस समय कुछ नहीं करना चाहिए । मैं हिंसासे कुछ नहीं करना चाहता और इसलिए [ सिद्धान्तके मामलेमें ] समझौतेकी नीति पसन्द नहीं करता । देशमें इस वक्त साफ तौरपर ये ही दो दल हैं। दोनोंको अपने- अपने कार्यक्रम हिम्मतके साथ सरकार और जनता दोनोंके सामने रखने चाहिए और उनकी स्वीकृतिके लिए आन्दोलन करना चाहिए। मेरी राय में ऐसा करनेसे ही हम वास्तविक प्रगति कर सकेंगे। अभी तो हम कोल्हूके बैलकी तरह जहाँ-तहाँ चक्कर लगाते रहते हैं।

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

[ अंग्रेजीसे ]
महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे ।
सौजन्य : नारायण देसाई


  1. गांधीजीने यह पत्र श्री चक्रवर्तीके उस पत्रके उत्तरमें लिखा था जिसमें उन्होंने कहा था कि सुरेन्द्रनाथ बनर्जी के नाम लिखे गांधीजीके पत्रको गलत समझा जा रहा है और गांधीजीको एक वक्तव्य निकालना चाहिए कि वे कांग्रेसके खिलाफ नहीं हैं ।
  2. १९२० में कलकत्ता कांग्रेसकी स्वागत समितिके अध्यक्ष ।

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