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३२. पत्र : बाल गंगाधर तिलकको

[ अगस्त २५, १९१८][१]

आपका खत मिला है। आपकी दिलसोजीसे मैं अनुगृहीत हुआ हूँ । मेरे स्वास्थ्यके लिए आप क्यों चितित न होंगे ? ईश्वरकृपासे मेरी तबियत अब ठीक है । बिछाना तो मैं थोड़े रोज तक नहीं छोड़ सकूंगा । बड़ा दर्द हो रहा था । वह अभी शांत हुआ। कांग्रेस में आनेका मेरा इरादा है नहीं । नरम दलके सम्मेलनमें भी जानेका इरादा है नहीं। मैं देखता हूं मेरा अभिप्राय दोनोंसे विचित्र है । वह आपको मैंने बतला दिया है । मेरा मंतव्य है कि इस समय युद्धकी भरतीमें हम सब लग जानेसे और लाखोंको ले जानेसे हिन्दुस्तानकी बड़ी भारी सेवा कर सकते हैं । मेरी इस रायमें आप और मि० बेसंट संमिलित नहीं है। मैं जानता हूँ नरम दलवाले भी इस कार्य में तीव्रतासे शामिल नहीं होंगे। यह तो एक बात हुई । मेरी दूसरी राय यह है : मॉन्टेग्यू-चेम्सफर्ड योजनाका तत्व ग्रहण करना और उसमें जो कुछ सुधार हम चाहते हैं वह सुधार साफ-साफ बता देना । और जो सुधार हम बतायेंगे उसका स्वीकार करानेके लिये मरण पर्यंत लड़ना । इस सूत्रका नरम दल स्वीकार नहीं करेंगे यह तो स्पष्ट है। यदि आप और मि० बेसंट स्वीकार करेंगे तो भी जिस तरहसे में लड़ना चाहता हूं वैसा तो आप नहीं लड़ेंगे । मि० बेसंटने कह दिया है कि वह सत्याग्रही नहीं है । आपने दुर्बलोंका एक हथियार मानकर सत्याग्रह स्वीकार किया है । इस भ्रमणामें में पड़ना नहीं चाहता । और आप दोनोंसे विमुख होकर कांग्रेसमें आंदोलन करना नहीं चाहता। मेरे सूत्रपर मेरा अचल विश्वास है । और मेरा यह भी मंतव्य है कि यदि मेरी तपश्चर्या संपूर्ण होगी तो आप और मिसस बेसेंट मेरे सूत्रका स्वीकार करेंगे। मैं धैर्य रख सकता हूँ ।

नरम और गरम दल अपनी थोड़ी थोड़ी बातोंको छोड़कर संमिलित हो जानेकी चेष्टा करें, यह मुझे बिलकुल पसंद नहीं । देशमें दो पक्ष हैं। दोनों पक्षोंकी राय साफ साफ राजाको और प्रजाको बताने में कुछ भी हानि होगी ऐसा मैं नहीं मानता। गरम दल और नरम दलको मिलानेकी चेष्टा करना मुझे बिलकुल पसन्द नहीं है। दोनों पक्ष दृढ़तासे उनकी राय राजाप्रजाकी समक्ष रखेंगे तो बडा फायदा पहुँचेगा। आपके कार्य में प्रभु आपको सहाय हो ।

आपका
मोहनदास

महादेवभाईकी डायरी, खण्ड १



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  1. महादेवभाईनी डायरोमें दी गई तिथि ।