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पत्र : पुण्डलीकको


पढ़ना। उससे सम्बन्धित प्रसंग समझमें न आयें, तो उनके बारेमें पूछ लेलेन। तुम्हें यह पुस्तक भिजवानेका प्रबन्ध कर रहा हूँ। तुम्हारे अक्षर सुधर नहीं रहे हैं।

बापूके आशीर्वाद

[ गुजरातीसे ]
महादेवभाईनी डायरी, खण्ड ४

३९. पत्र : हरिलाल गांधीको

अगस्त २९, १९१८

चि० हरिलाल,

तुम्हारा पत्र मिला। मेरा स्वास्थ्य सुधरता जा रहा है। चिन्ता करनेका कोई कारण नहीं है। अभी कुछ दिन बिछौनेपर पड़े रहना होगा । मेरी सेवा-शुश्रूषामें कोई कमी नहीं होती। मैं कल्पना नहीं कर सकता कि इससे अधिक सेवा किसी चक्रवर्ती राजाकी भी होती होगी। तुम अपना भोजन स्वयं बनाते हो और इसमें तुम्हें रस आता है, यह बात मुझे बहुत प्रिय लगती है। शायद इससे तुम बनोगे, शायद इससे तुम जीवनके तत्त्वको समझ लोगे और अपनी पिछली भूलोंको सुधारकर अपना जीवन उज्ज्वल बना लोगे। मैं चाहता हूँ कि तुम अपना जीवन उज्ज्वल बनाओ । नियमित रूपसे पत्र लिखते रहो तो अच्छा ।

बापूके आशीर्वाद

[ गुजरातीसे ]
महादेवभाईनी डायरी, खण्ड ४

४०. पत्र : पुण्डलीकको

भाई पुण्डलीक,[१]

अहमदाबाद
श्रावण जन्माष्टमी [ अगस्त २९, १९१८]

काकाजीपर और मेरेपर जो तुम्हारे खत आए हैं वह पढ़कर मैं बहुत सन्तुष्ट हुआ हूँ। मेरी सलाह या तो परवानगी बिना भीतीहरवा नहीं छोड़नेका निश्चय बड़ा अच्छा है। मैं देखता हूँ सुपरिन्टेन्डेन्ट दुख देना चाहता है। आपने धैर्यसे उत्तर दिया वह ठीक है। कोईसे ज्यादा बात करना नहीं। गांवमें अवश्य जाना और रास्ता, घर इत्यादि साफ रखनेके लिए लोगोंको शिक्षण देना। मुझको बारंबार पत्र लिखते रहना; मैं भी पत्रोत्तर भेजूँगा।

  1. १.नारायण तमाजी कातगडे उर्फ पुण्डलीक; महाराष्ट्रके एक स्वयंसेवक, जो कुछ समय तक चम्पारन में भीतीहरवा। पाठशालाके प्रबन्धक थे।