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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

इस समय तो मैं बीमार हूँ, अशक्ति बहुत है। अच्छा होनेसे थोड़े समय के लिए भी चम्पारनमें आजानेका मेरा इरादा है।

इश्वर तुम्हारी रक्षा करे।

आपका
मोहनदास गांधी

गांधीजीके हस्ताक्षरयुक्त हस्तलिखित मूल पत्र ( जी० एन० ५२१६) की फोटो नकलसे।

४१. पत्र : सी० एफ० एन्ड्रयूजको

अगस्त ३०, १९१८

तुम्हारे सारे प्रेम-सन्देश मेरे सामने रखे हैं । वे ठण्डक पहुँचानेवाले मरहमकी तरह हैं। इस बीमारीपर ज्यों-ज्यों विचार करता हूँ, इस बातका अधिकाधिक साक्षात्कार होता है कि मनुष्यका मनुष्यके प्रति और इसलिए ईश्वरका मनुष्यके प्रति प्रेम क्या होता है। इसमें प्रकृतिके कल्याणकारी हाथके सिवा मुझे और कुछ दिखाई नहीं देता। मेरा खयाल है कि ऊपरसे जो हमें प्रकृतिका प्रचण्ड कोप मालूम देता है, वह दरअसल प्रेमके आविर्भावके सिवा और कुछ नहीं है।

मैं सचमुच चाहता हूँ कि तुम मेरी चिन्ता न करो। शान्तिनिकेतनके तुम्हारे श्रेष्ठ कार्यमें किसी भी तरह बाधा पड़ी तो वह बड़े कष्टकी बात होगी। शान्तिनिकेतनमें तुम्हारे और गुरुदेवके कामका हाल सुनकर मुझे कितना आनन्द हुआ है, यह में वर्णन नहीं कर सकता। मुझे कहना चाहिए कि तुम्हारे हर पत्रको मैं काँपते हुए हाथोंसे खोलता हूँ कि कहीं किसी बातसे गुरुदेवके महान् कार्यमें कोई खलल तो नहीं पड़ा। यह जानकर बड़ी राहत मिलेगी कि दोनों किसी भी बाधा के बिना सत्र-भर बच्चोंको पढ़ाते रह सके हैं और दोनों पूरी तरह स्वस्थ भी बने रहे हैं।

बड़ोदादाके आशीर्वादके लिए आभारी हूँ। उनके आशीर्वादको में बहुत मूल्यवान समझता हूँ। गुरुदेवकी शुभेच्छाओंके लिए उनका भी कृतज्ञ हूँ । श्री रुद्रको[१]मेरी याद कराना।

हम सबकी तरफसे तुम सबको प्यार।

तुम्हारा,
मोहन

[ अंग्रेजीसे ]
महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे ।
सौजन्य : नारायण देसाई
  1. १. एस० के० रुद्र, सेंट स्टीफेंस कॉलेज, दिल्लीके प्रिंसिपल।