पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 15.pdf/७३

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४७. प्रस्ताव : गुजरात सभा,अहमदाबाद द्वारा[१]

[ सितम्बर, १९१८]

गुजरात सभाने, जिसके अध्यक्ष श्री गांधी हैं, अहमदाबादमें हुई अपनी सामान्य बैठक में सर्वसम्मति से पास एक प्रस्तावका निम्नलिखित अनुवाद कुछ दिन पहले जारी किया था:

सभाकी राय में स्वराज्य हासिल करनेका सबसे आसान और सीधा तरीका यही है कि इस खतरेकी घड़ीमें युद्ध और युद्ध प्रयोजनोंके लिए जितने भी हो सकें उतने व्यक्ति जुटाकर साम्राज्यकी सहायता की जाये,इसलिए यह सभा प्रस्ताव करती है कि रंगरूटोंकी भरतीके लिए जो बने सो करना चाहिए और उसके लिए आवश्यक मंजूरी भी हासिल करनी चाहिए। सभा अपनी तरहकी अन्य संस्थाओंको भी ऐसा ही करनेकी सलाह देती है। सभा अध्यक्ष और मन्त्रियोंको उपर्युक्त प्रस्तावपर अमल करनेके उद्देश्यसे सभी आवश्यक कदम उठानेके लिए अधिकृत करती है।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन रिव्यू, सितम्बर, १९१८

४८. पत्र : सी० एफ० एन्ड्रयूजको

सितम्बर ३, १९१८

प्रिय चार्ली,

मेरी तबीयत रोज-रोज सुधर रही है। तुम मेरी जरा भी चिन्ता न करना। यद्यपि हम सशरीर नहीं मिलते, फिर भी आत्माका मिलन तो हो ही जाता है। अब मैं थोड़ा-थोड़ा पढ़ने लगा हूँ। आजकल धर्मपर गुजरात कॉलेजके प्रोफेसर आनन्दशंकर ध्रुवके सुन्दर निबंधोंका संग्रह पढ़ रहा हूँ। तुम इनसे मिल चुके हो। ये निबन्ध शुद्ध कांचन हैं। श्री ध्रुव इस प्रान्तके संस्कृतके एक बड़े विद्वान् हैं। इन निबन्धोंसे मुझे बहुत बड़ा सुख मिला है। आत्माके मिलनका अर्थ अधिक अच्छी तरह समझ लेनेमें उन्होंने मुझे मदद दी है। मैं आत्माके मिलनकी बात उसी गहरे और पूर्ण अर्थमें कह रहा हूँ।

मैं कह चुका हूँ कि मैं किसी भी कारण तुम्हारा बोलपुर छुड़वाना नहीं चाहता। इस समय तुम्हारा काम वहीं है, और कहीं नहीं।

औपनिवेशिक प्रवासपर लिखी उस रद्दी हिन्दी पुस्तकके लिए तुमने प्रस्तावना क्यों लिख दी? मैंने अभी-अभी उस पुस्तकपर नजर डाली है। मेरा खयाल है कि

  1. १.इसका मसविदा शायद गांधीजीने तैयार किया था।