५१. पत्र : रणछोड़लाल पटवारीको
सत्याग्रह आश्रम
सोमवार, गणेश चतुर्थी [ सितम्बर ९, १९१८]
आपका पत्र मिला । मेरा स्वास्थ्य सुधरता जा रहा है, लेकिन कमजोरी बहुत है । इसलिए बिस्तरपर पड़े रहना पड़ता है । चिन्ता करनेका कोई कारण नहीं है । तबीयत बिलकुल ठीक हो रही थी कि इस बीच बुखार चढ़ आया, इससे कमजोरी बढ़ गई। अब बुखार बिलकुल [ भी ] नहीं है । मैं अपने इस रोगके कारण लज्जाका अनुभव करता हूँ। मेरी ऐसी मान्यता थी कि मुझे पेचिश-जैसा रोग हो ही नहीं सकता । इस रोगका कारण मैं स्वयं ही हूँ। हालाँकि मेरा स्वास्थ्य अच्छा रहता था, फिर भी मेरी त्वचा बहुत कोमल हो गई थी। इतना समय हुआ, इसके [ नमकके ] बिना मेरा चल तो जाता था किन्तु पैरोंमें जितनी ताकत आनी चाहिए थी वह नहीं आ रही थी । मेरे डाक्टर मित्र तो हमेशासे [ यही ] कहते रहे हैं कि मुझे नमक लेना चाहिए । कदाचित् मुझे फ्रांस और मैसोपोटेमिया जाना पड़ा तो [उसके लिए ] त्वचा जरा कड़ी होनी चाहिये, इस विचारसे मैंने नमकका प्रयोग करना शुरू किया जिसके बिना इतने वर्षों तक मैं निर्वाह करता रहा । उससे दस्त आने शुरू हो गये । इससे मुझे चेत जाना चाहिए था कि मुझे नमक नहीं लेना चाहिए लेकिन मैंने केवल आंशिक उपवास किया । उसके परिणामस्वरूप भयंकर पेचिश हो गई। पेचिशमें भोजन करना यह तो विषके समान है; [ इतना जानते हुए भी ] मैंने भोजन किया। इस प्रकार मुझे संयम-भंग करनेकी सजा भोगनी पड़ी है ।
वर्षाकी कमी के कारण निस्सन्देह लोगोंको भारी दुःख भोगना पड़ेगा । यहाँपर तो फिर भी कुछ बारिश हुई है। आते-जाते लोगोंसे काठियावाड़ के समाचार पूछता रहता हूँ और समाचारपत्रोंमें भी पढ़ता हूँ । उनसे [भी] यही पता चलता है कि वहाँकी स्थिति यहाँसे भी बदतर है ।
वहाँका काम छोड़कर नहीं आया जा सकता, यह मैं अच्छी तरहसे समझ सकता हूँ । अछूतोंसे सम्बन्धित लेख 'पताका' ढूंढ़कर पढ़ लूंगा। मैं विरुद्ध पक्षको पूरी तरह समझना चाहता हूँ, और अगर उसमें मुझे धर्म दिखाई दे, तो अपनी राय छोड़नेमें एक क्षण भी देर न करूँगा । आजतक मैंने जितनी दलीलें देखी हैं, उन सबका आधार रूढ़ि-धर्म है। शुद्ध धर्मपर आधारित एक भी दलील मैंने अभीतक नहीं सुनी। अछूतोंका सवाल मैंने तो केवल धार्मिक वृत्तिसे उठाया है। राजनीतिके साथ उसका कोई सम्बन्ध नहीं है । उसके राजनीतिक परिणाम जरूर आते हैं, परन्तु उनपर मैंने दृष्टि रखी ही नहीं। मैं इतना और कह देना चाहता हूँ कि मेरे कहनेका यह आशय नहीं
- ↑ १. गांधीजीके मित्र, पश्चिम भारतकी देशी रियासतों में दीवान थे।