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५३. पत्र : हरिलाल गांधीको

सितम्बर ९, १९१८

[ चि० हरिलाल, ]

यह बात सच है कि खाना पकाने में समय लगता है, परन्तु मैं मानता हूँ कि यह समय व्यर्थ नहीं जाता । और उस समय में कोई बड़ा काम किया जा सकता है यह बात भी आम तौरपर सही नहीं है । खाना पकानेमें जितना समय लगता है, उससे अधिक समय पंचानवे प्रतिशत लोग रोज व्यर्थ गँवा देते हैं। पंचानवे प्रति- शत कहने में तो मैं उदारतासे काम ले रहा हूँ । फिर, खुद खाना पकानेवाले मनुष्यको जब स्वयं बहुत काम होता है, तब वह इतनी जल्दी खाना पका लेता है कि तुम्हें तो आश्चर्य होगा । मैं अपनी ही मिसाल दूं तो मैं, विलायत में जब मेरे बहुत पढ़ाईके दिन थे, उन दिनों खाना पकानेमें सुबह-शाम आध घंटे से ज्यादा समय नहीं लगाता था । सबेरे दलिया पकाता था, उसमें ठीक बीस मिनिट लगते थे और यदि शामको पकाता था तो सब्जियोंका रसा बनाता था । इसे तो हिलाना भी नहीं पड़ता, इसलिए जो वक्त रसेका सामान तैयार करनेमें लगता है, वही लगता था । रसा चूल्हेपर चढ़ा देनेके बाद मैं उसके पास बैठ जाता और पढ़ता रहता । मेरे पास कभी-कभी काशीसे विद्यार्थी आते हैं । इन सबसे मैं पूछता हूँ कि वे क्या करते हैं । ब्राह्मण बहुत करके स्वयं ही भोजन बनाते हैं । एकने मुझसे यह कहा: मैं खिचड़ी पकाता हूँ और उसे दूध और अचारसे खा लेता हूँ । जबतक मैं खिचड़ी खाता हूँ, तबतक मोटी रोटी सिक जाती है । मैं शामको वह मोटी रोटी खा लेता हूँ और दूध पी लेता हूँ । इसमें मुझे कुल पौन घंटा लगता है । यह तो मैंने आत्यन्तिक उदाहरण दिया है । मैं यह नहीं चाहता कि तुम इतनी तंगी सहो, परन्तु दृष्टान्त देता हूँ कि स्वयं भोजन बनानेमें बहुत कम समय में भी काम चल सकता है । उस विद्यार्थीका शरीर नीरोग और हृष्ट-पुष्ट था, क्योंकि खिचड़ी, दूध या दही और अचारमें शरीरके लिए आवश्यक पूरा पोषण तत्त्व आ जाता है । जिसे बढ़िया दूध या दही मिल जाये, उसे दूसरे पदार्थोंकी बहुत कम जरूरत रह जाती है । तुम मेरे लिखनेका अर्थ यह न समझ लेना कि तुम सदा ही अपना खाना आप पकाओ । बल्कि उपर्युक्त बातें मैंने इसीलिए लिखी हैं कि मौका पड़नेपर तुम खाना पकानेमें जरा भी न हिचकिचाओ और यह मानकर दुःख न करो कि इतना समय बेकार गया । वैसे यदि तुम अपनी स्थिति सुधरनेपर चंचीको बुला लो और मर्यादामें रहकर स्वाद लो एवं भोग भोगो, तो इसमें मेरे लिए कहने योग्य कोई बात नहीं हो सकती । सिर्फ इतना ध्यान रखना कि जो भूल हो चुकी है, वह फिर कभी न हो । मैं चाहता हू कि तुम एकदम धनी बन जानेका लोभ न करो ।

१. चंचलबेन गांधी; हरिलाल गांधीकी पत्नी ।