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५५. पत्र : पुण्डलीकको

सत्याग्रहाश्रम
साबरमती
भाद्रपद शु० पूर्णिमा, २०-९-१९१८

भाई श्री पुण्डलीक,

आपके सब खत में बड़े ध्यानसे पढ़ता हूँ । आपके सब जवाब बड़े अच्छे हैं । सत्यका प्रभाव हि ऐसा है । सुपरिन्टेन्डेन्टका अपमानकी बरदाश्त करनेमें जो शौर्य रहता है, वह अपमानके सामने अपमान करनेमें नहि है। आपकी तितिक्षासे सुपरिन्टेन्डेन्टको जितना सहन करना पड़ेगा उनका शतांश भी आपके अपमानसे उसको नहीं सहना पड़ता। वह तो चाहता है कि आप आवेशमें आकर कुछ भी अयुक्त वाक्य बोल दें। अब आपके प्रश्नोंका उत्तर देता हूँ ।

यदि पाठशाला या तो भीतीहरवा छोड़नेकी सरकारी लिखित नोटिस मिले, तो पाठशाला या तो भीतीहरवा छोड़कर मुझे तार दिया जाये ।

२. सुपरिन्टेन्डेन्ट जो कुछ प्रश्न पूछे, उसका उत्तर जैसे देते हो, वैसे ही देते रहना। पूरा सत्य कहना। मैं जो कुछ लिखता हूँ, वह सब उसको कहनेमें कुछ भी हर्ज नहीं है ।

आपकी सत्यताकी उपर मेरा पूर्ण विश्वास है ।

आपका
मोहनदास गांधी

गांधीजीके हस्ताक्षरयुक्त हस्तलिखित मूल पत्र ( जी० एन० ५२१७) की फोटो नकलसे ।

५६. तार : डॉ० प्राणजीवन मेहताको

सितम्बर २१, १९१८

मेरे विचारमें लेख[१] प्रकाशित नहीं करना चाहिए। प्रकाशित हो गया हो तो गुजरातकी विशेष उपयुक्तता सम्बन्धी। भाग निकालना नितान्त आवश्यक है। पत्रमें विस्तारसे लिख रहा हूँ ।

[ अंग्रेजीसे ]
महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे ।
सौजन्य : नारायण देसाई

सितम्बर २१, १९१८

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