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५७. पत्र : डॉ० प्राणजीवन मेहताको

[ अहमदाबाद ]
सितम्बर २१, १९१८

[ भाईश्री प्राणजीवन, ]

आपका लेख ध्यानसे पढ़ा गया। कल एक तार दिया था; दूसरा आज दिया है । आपका विचार[१]उत्तम है; परन्तु मौजूदा वातावरणमें उसपर अमल किया जाना जरा भी सम्भव नहीं है । कोई भी दूसरा प्रान्त इस बातका समर्थन करे, सो बात नहीं । आपको पता होगा कि बंगाल इस विषय में बहुत प्रयत्न कर रहा है । उसका तो यह गुप्त प्रयत्न भी जारी है कि पूर्ण स्वराज्य सबसे पहले उसीको मिले। गुजरातमें ऐसा कौन होगा जो यह प्रयत्न करनेके लिए तैयार न हो कि गुजरातको ही सबसे पहले स्वराज्य मिले ? शर्माने यही सुझाव जो आपने दिया है कुछ दूसरे रूपमें केन्द्रीय परिषद में[२]रखा था । और मैं यह स्वीकार करता हूँ कि उसे सब सदस्योंने बड़े ही अनुचित ढंगसे हँसीमें उड़ा दिया । उसे मॉण्टेग्यूने[३]महत्त्व दिया है; परन्तु यह कहा है कि इस समय ऐसा महत्त्वपूर्ण हेरफेर करना ब्रिटिश अधिकारियोंका काम नहीं है; परन्तु उसपर भविष्यमें जो नई परिषदें बनेंगी वे विचार कर सकेंगी। यह तो हुआ आपके प्रस्तावके सम्बन्धमें ।

गुजरातकी श्रेष्ठताके बारेमें आपने जो तर्क दिये हैं, उनसे तो क्लेश ही खड़ा हो सकता है । इस समय यह बात झगड़ेकी जड़ बन जायेगी । महाराष्ट्रके लोग स्वराज्यके लिए अपनी योग्यताके सम्बन्धमें हमारी अपेक्षा अधिक प्रमाण पेश कर सकेंगे। मद्रासी कहेंगे, हम तो पाश्चात्य तरीकोंके रंगमें पूर्णतया रँग गये हैं, इसलिए हमारे बराबर योग्य तो कोई हो ही नहीं सकता। आम तौरपर माना जाता है कि गुजरात बहुत पिछड़ा हुआ प्रदेश है; और अपने पक्षके समर्थनमें आप जो तर्क प्रस्तुत कर रहे हैं, वे ही हमारे विरुद्ध इस्तेमाल किये जायेंगे। इन सब विरोधी बातोंसे हमें हतोत्साहित नहीं होना है; इसका कोई कारण भी नहीं है । किन्तु स्वराज्यके इस आन्दोलनको ऐसे वातावरण में आरम्भ करना उचित होगा या नहीं, इस प्रश्नपर विचार करना आवश्यक है । इन


  1. डॉ० मेहताने मॉण्टेग्युके एक भाषणको प्रेरणापर गुजरातको स्वराज्य देनेको कल्पनाको विशद करते हुए एक लेख लिखा था ।
  2. फरवरी ६, १९१८ को रायबहादुर बो० एन० शर्माने शाही परिषद् में एक प्रस्ताव रखा था जिसमें उन्होंने भाषाके आधारपर प्रान्तोंके पुनर्निर्माणको सिफारिश की थी। प्रस्ताव भारी बहुमतसे अस्वीकृत कर दिया गया था; देखिए इंडिया इन १९१७-१८, पृष्ठ १६३।
  3. ई० एस० मोण्टेग्यु (१८७९ - १९२४); भारत-मन्त्री (१९१७-२२ ); और मॉण्टेग्यु चैम्सफोर्ड सुधारोंके सह-प्रणेता।