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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

बातोंपर विचार करके जो कुछ लिखना उचित समझें सो लिखें। मैं उसपर अमल करनेके लिए तैयार हूँ ।

मोहनदासके वन्देमातरम्

[ गुजरातीसे ]

महादेवभाईनी डायरी, खण्ड ४

५८. भाषण : ' पिलग्रिम्स प्रोग्रेस ' पर

सितम्बर २१, १९१८

'पिलग्रिम्स प्रोग्रेस'का पाठ आरम्भ करते हुए गांधीजीने कहा :

देखो भाई, इसका लेखक कौन है ? जॉन बनियन । तुम्हें मालूम है, वह कौन था? वह हमारे प्रह्लादजी-जैसा सत्यव्रती था । जैसे प्रह्लादजीने सत्यकी खातिर कष्ट सहे, वैसे ही वह भी सत्यकी खातिर जेलमें रहा था; और जैसे हमारे तिलक महाराजने जेल में रहकर 'गीता-रहस्य' लिखा था, वैसे ही उसने भी जेलमें यह तीर्थयात्रीकी यात्रा लिखी थी। इसे यात्रा कहो, उत्थान कहो या प्रगति कहो ।

जैसे 'गीता' पर भाष्य है, वैसे 'पिलग्रिम्स प्रोग्रेस' 'बाइबिल' का एक भाष्य है । इसे 'बाइबिल ' पर लिखा गया भाष्य भी नहीं कहा जा सकता; बल्कि कहना चाहिए कि यह 'बाइबिल ' के सबसे सुन्दर भागका विवेचन है । अग्रेजीमें तो यह बहुत ही ऊँची चीज मानी जाती है; इसे लगभग 'बाइबिल ' के समान स्तरपर ही प्रतिष्ठित किया जाता है। बनियनने बच्चोंके लिए वह इतनी सरल और सुन्दर भाषामें लिखी है कि जहाँ-जहाँ अंग्रेजी भाषा बोली जाती है, वहाँ-वहाँ वह बच्चोंके लिए अद्भुत पुस्तक मानी जाती है। इससे भी अधिक, पुस्तकके उपोद्घातमें, जैसे तुलसीदासजीने 'रामायण' के बारेमें कहा है, वैसे ही इस पुस्तकके बारेमें भी कहा गया है कि इसे भविष्यमें सब लोग पढ़ेंगे । और यह है भी 'रामायण' जैसी । जैसे तुलसीकृत 'रामायण' में बच्चोंको भी रस आता है और बहुत-से बड़े-बड़े लोग भी गोते खाते हैं, उसी तरह इस पुस्तकमें भी बच्चोंको बहुत रस आ सकता है । परन्तु अब तो हम यह पुस्तक पढ़ेंगे। देखो, उसने यह कहा है :

"संसाररूपी वनमें भटकते-भटकते...।" हमारे यहाँ भी संसारको घोर वन बताया गया है । इसी तरह उसने भी संसारको वन कहा है। वह कहता है, मैं ऐसे संसाररूपी वनमें थका-माँदा एक घोर गुफामें आ पड़ा । शरीर श्रमसे ही थका-माँदा नहीं था, बल्कि आत्मिक श्रमसे भी श्रान्त था । अनेक विचार किये, अनेक स्थानोंमें अनेक बातें जानीं और सुनीं, परन्तु कोई तत्त्वकी बात नहीं मिली । बेचारेकी आत्मा थककर चूर हो गई थी; इसलिए वह थकानसे सो गया । सो गया और सपना देखा । सपने में उसने क्या देखा ? किसे देखा रुखी,[१]पहने एक मगनलाल गांधीकी पुत्री ।

  1. मालूम है, फटे-पुराने कपड़े