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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

घास-फूसकी तरह बढ़ती रहती है । हमारे अस्तित्वका असल कानून तो 'बुराईका मुकाबला बुराईसे न करो' है । इस दुनियामें हम दो वृत्तियाँ लेकर आते हैं एक पाशविक और दूसरी मानवीय; मानवीय वृत्तिको पाशविक वृत्तिपर निरन्तर विजय प्राप्त करनी है । किन्तु इस पत्रमें यह विषयान्तर-सा है । यद्यपि मेरे लिए तो वह प्रिय है, परन्तु अभी मैं उसमें पड़ना नहीं चाहता। अभी तो यही बताना था कि मैं श्री घाटेकी मार्फत अली भाइयोंके साथ बड़ा घनिष्ट सम्पर्क बनाये हुए हूँ ।

[ अंग्रेजीसे ]

महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे ।
सौजन्य : नारायण देसाई

६०. पत्र : नानूभाईको

[ अहमदाबाद ]
सितम्बर २४, १९१८

[ भाईश्री नानूभाई, ]

लड़ाईमें जाना बिलकुल ही बन्द हो गया है, ऐसा मान बैठनेका कोई कारण नहीं है। किन्तु मुझे आसार बन्द रहनेके ही दिखाई देते हैं । यह मानना भी जरूरी नहीं कि लड़ाईमें जानेसे ही वीरता आती है । लड़ाईसे अलग रहकर भी हम अपने भीतर वह शक्ति पैदा कर सकते हैं। लड़ाई बहुत-से साधनोंमें से एक सशक्त साधन है । परन्तु वह जितना सशक्त है, उतना ही दोष युक्त भी है। हम दोषरहित ढंगसे वीरत्व प्राप्त कर सकते हैं। हमारा शरीरके साथ जो संघर्ष चल रहा है; इस संघर्षसे यदि हम ऐसी शक्ति प्राप्त कर लें जिससे यह आत्मा अनात्मासे युद्ध कर सके, तो उससे हममें वीरता आ जायेगी ।

मोहनदासके वन्देमातरम्

[ गुजरातीसे ]

महादेवभाईनी डायरी, खण्ड ४