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६१. पत्र : कल्याणजी मेहताको


आश्रम
भाद्रपद, कृष्णपक्ष ४ [सितम्बर] २४, [१९१८]

भाईश्री कल्याणजी,[१]

मैंने तो अपने स्वभावके अनुसार कह दिया था कि आप अपनी पत्नीको निश्चिन्त होकर भेज दीजिएगा, बरामदे में पड़ी रहेगी। लेकिन मैं देखता हूँ कि यह बात आश्रममें किसी और व्यक्तिको पसन्द नहीं आयेगी । [ आश्रमकी ] स्त्रियोंको यह असह्य लगता है । वे सब यह मानती हैं कि उनके लिए कोई-न-कोई एकान्त स्थान अवश्य होना चाहिए और आपकी पत्नीके लिए जबतक ऐसी कोई व्यवस्था न हो जाये तबतक उनका यहाँ आना अन्य स्त्रियोंको बहुत बुरा मालूम होगा। अब मैं [ इस बातपर विचार कर रहा हूँ कि उनको एकान्त स्थान देनेकी क्या व्यवस्था की जाये । [ जबतक ] ऐसी कुछ व्यवस्था न हो जाये तबतक आप प्रतीक्षा करें, यही ठीक लगता है ।

मोहनदास गांधी वन्देमातरम्

मूल गुजराती पत्र ( जी० एन० २६६७) की फोटो नकलसे ।

६२. आश्रम में अपने जन्म-दिवसकी बधाईका उत्तर

[ अक्तूबर १, १९१८][२]

तुम सबने आज सबेरे यहाँ आकर मुझपर जो प्रेम बरसाया है, क्या मैं उसके योग्य हूँ? मेरे खयालसे में उसके योग्य नहीं हूँ। आम तौरपर मैं [ आश्रमसे ] बाहर भी शिष्टाचारकी बात नहीं कहता और आश्रममें तो अवश्य ही नहीं कहूँगा । इसलिए मैं यह बात भी शिष्टाचारवश नहीं कहता । परन्तु मुझे अपने अन्तरमें यही महसूस होता है कि तुम सब मेरे प्रति जो अगाध प्रेम दिखा रहे हो, उसका मैं पात्र नहीं हूँ। जिसने सेवा-धर्म स्वीकार किया है, उससे तो बहुत उम्मीदें की जा सकती है। मैंने जो कुछ किया है, वह तो उसकी तुलनामें कुछ नहीं है । तुम सबने भी सेवा-धर्म स्वीकार किया है । मैं तुम सबसे कहता हूँ कि तुम अपनी भक्ति संचित कर रखो। किसी मनुष्यके मरनेसे पहले उसके प्रति भक्ति प्रकट करना ठीक नहीं है, क्योंकि उसकी मौत से पहले उसका काम पूरी तरह देखे बिना हम उसके कामका मूल्यांकन कैसे कर सकते हैं ?

  1. कल्याणजी विठ्ठलभाई मेहता; सूरत जिलेके एक कांग्रेसी नेता ।
  2. भारतीय पंचांगके अनुसार जन्म-दिन इसी दिन पड़ता था ।

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