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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

फिर, मरनेके बाद भी मूल्यांकन करनेमें देर लगती है । इसलिए मनुष्यकी मृत्युसे पूव उसकी जयन्ती मनाना व्यर्थ है ।

तुम लोगोंसे मैं और तो क्या कहूँ ? आज प्रातः चार बजेसे पहले मैं विचार कर रहा था । सुरेन्द्रने[१]मुझसे एक सवाल पूछा था, आप मुझसे अधिकसे-अधिक क्या आशा रखते हैं ? देवदास से क्या उम्मीद करते हैं ? छोटालालसे[२]क्या रखते हैं ? मैं तुममें से हरएकसे क्या आशा रखता हूँ, यह कहनेके बजाय तुम सबसे जो एक आशा रखता हूँ उसे बता दूँ । वह यह है कि तुम सत्यका, जो हमारा पहला और अन्तिम व्रत है, समुचित पालन करो। जिसमें हमने मोक्ष माना है, उसी व्रतका पालन हमें समुचित रूपसे करते रहना चाहिए। इस प्रकार काम करके तुम लोगोंने आश्रमके जो उद्देश्य समझे हैं, उन्हें यथाशक्ति पूरे करके तुम आश्रमकी प्रतिष्ठाको बढ़ाओ । तुम लोगोंके काम और चरित्रसे आश्रमकी कीमत आँकी जायेगी । आश्रम भारतकी सेवा करनेके लिए स्थापित किया गया है । हमें भारतकी सेवा द्वारा आत्माकी सेवा करनी है । हमारे आलोचक भी बहुत हैं । आलोचक तो होते ही हैं, परन्तु यदि हम अपने पहले और अन्तिम व्रत -- सत्यका पालन करते होंगे, तो हमें उनकी आलोचनाओंसे डरनेकी जरूरत नहीं है। हम दम्भ करते होंगे, पाखण्ड करते होंगे, तो दूसरी बात है । परन्तु हमारा ध्येय तो यही है, इसमें कोई शक नहीं । आश्रम हम सबके चरित्रका जोड़ है । इसलिए मैं चाहता हूँ कि प्रत्येक आश्रमवासीका चरित्र इतना उन्नत हो जाये कि यह कुल जोड़ बड़ा हो जाये। मैं इस व्रतका कहाँतक पालन करता हूँ या कर सकता हूँ, यह मैं बार-बार जाँचता रहता हूँ और मुझे अपने भीतर बहुत-सी त्रुटियाँ मालूम होती हैं। मुझे पता नहीं कि मैं इन त्रुटियोंको इस जन्ममें दूर कर सकूँगा या नहीं । तुममें या आश्रममें जो त्रुटियाँ हैं, वे मेरे इसलिए मैं तुमसे यह चाहता हूँ कि तुम भगवानसे मेरी और शुरू किये हुए कामोंमें मुझे सफलता देनेकी बरसाते हो, जो भक्ति दिखाते हो, मैं उसके योग्य बननेका प्रयत्न करूँगा । मैं भगवान् से प्रार्थना करता हूँ कि वह मुझे बल दे । भगवान् करे, तुम्हें भी अपने कर्त्तव्यका पालन करनेमें सफलता मिले। मेरी कामना है कि में और तुम एक-दूसरेको मदद देनेमें समर्थ हों। और क्या कहूँ ? तुम्हारी भक्तिका फल मिले बिना नहीं रहेगा । इसलिए जाओ, सब अपने-अपने कर्त्तव्यमें रत रहो ।

[ गुजरातीसे ]
महादेवभाईनी डायरी, खण्ड ४
  1. सुरेन्द्रलाल शर्मा, सत्याग्रह आश्रम, साबरमतीके एक सदस्य; वे बरहरवा, चम्पारनमें गांधीजीके खोले हुए एक स्कूल में अध्यापक थे।
  2. सत्याग्रह आश्रम, साबरमतीके एक सदस्य; वे बरहरवा स्कूलमें बुनाई सिखाते थे और हिन्दी पढ़ाते थे।