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६३. पत्र : गंगाबेन मजमूदारको[१]

[ अहमदाबाद ]
अक्तूबर ११, १९१८


[ प्यारी बहन, ]

तुम, कीकी[२]और दूसरे व्यक्ति बीमार हैं इसके बारेमें लिखा गया कार्ड आज ही पढ़ा। परन्तु यह पढ़कर प्रसन्न भी हुआ कि ईश्वरकी कृपासे तुम सबकी तबीयत सुधर रही है। जिन्होंने सेवा-धर्म स्वीकार किया है, उनके शरीर तो वज्र-जैसे कठोर होने चाहिए। किसी समय हमारे पुरखे अपने शरीर ऐसे बना सकते थे । परन्तु आज हम दीन बन गये हैं और वातावरणमें विद्यमान अनेक विषाक्त कीटाणुओंके शिकार हो जाते हैं । इस गिरी हुई हालत में भी हम इस स्थितिसे निकल सकते हैं और उसका एकमात्र सच्चा मार्ग है [ संयम या मर्यादाका पालन करना ] संयम कहें, मर्यादा कहें एक ही बात है । इस बीमारीमें दो बातोंकी सावधानी रखनेसे शरीरको कमसे कम खतरा रहता है, यह डॉक्टरोंकी राय है और वह सही है । तबीयत ठीक हो गई है ऐसा महसूस होनेपर भी तरल और सुपच सादा भोजन करते रहना चाहिए और बिस्तर में लेटे रहना चाहिए। कई रोगी दूसरे-तीसरे दिन एकाएक बुखार उतर जानेसे धोखा खाकर कामकाज करना और सामान्य भोजन करना आरम्भ कर देते हैं। इससे बीमारी फिर जोर पकड़ती है और ज्यादातर प्राण ही ले लेती है। इसलिए मेरी प्रार्थना है कि तुम सब बिस्तर में ही आराम करो। मुझे स्वास्थय समाचार रोज देते रहना । मैं अभी बिस्तर में ही पड़ा हूँ और बहुत दिन पड़े रहना पड़ेगा। फिर भी यह कहा जा सकता है कि स्वास्थ्य सुधर रहा है। डाक्टरोंने पत्र लिखनेकी भी मनाही की है, परन्तु तुम्हें लिखे बिना कैसे रहा जाये ? वहाँ रहनेमें असुविधा हो और यहाँ आना हो, तो जरूर आ जाना। अभी आश्रममें दस बीमार हैं, परन्तु उन सबमें भयंकर स्थिति तो भाई शंकरलाल पारेखकी ही जान पड़ती है । आज उनकी बीमारीका जोर भी कम होता लग रहा है ।

मोहनदासके वन्देमातरम्

[गुजरातीसे ]
महादेवभाईनी डायरी, खण्ड ४
  1. एक उत्साही महिला जिन्होंने गांधीजीके अनुरोधपर बीजापुर में खादी उत्पादन केन्द्रकी स्थापना की । देखिए आत्मकथा, भाग ५, अध्याय ३९ व ४० ।
  2. गंगाबेनकी पुत्री।