पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 15.pdf/८८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

६४. पत्र : अखबारोंको काछलियाके निधनपर[१]

अक्तूबर २०, १९१८[२]

सम्पादक
'बॉम्बे क्रॉनिकल'
महोदय,

मुझे अभी-अभी एक और दक्षिण आफ्रिकी भारतीयके निधनका तार मिला है; उनकी ओर जनताका ध्यान आकर्षित करना मेरा दुःखद कर्त्तव्य है । उनका शुभ नाम अहमद मुहम्मद काछलिया था । वे कई वर्षोंतक ब्रिटिश भारतीय संघ, ट्रान्सवालके अध्यक्ष रहे थे। श्री काछलियाकी ख्याति एकाएक सत्याग्रह आन्दोलनके दौरान फैली थी । दक्षिण आफ्रिकाके भारतीयोंमें उनके जैसी प्रतिष्ठा किसी दूसरे भारतीयकी नहीं थी । श्री काछलियाने ३१ जुलाई, १९०७ के दिन प्रिटोरियाकी पाक मस्जिदके एक पेड़की छायामें खड़े होकर जनरल बोथा और उनकी सरकारकी शक्तिकी खुली अवज्ञा की थी । मस्जिदके उस अहाते में होनेवाली विशाल जन- सभाके नाम जनरलका एक सन्देश श्री हॉस्केन[३] लाये थे । सन्देश था कि भारतीय लोग ट्रान्सवाल सरकारका मुकाबिला करके दीवारसे अपना सिर मार रहे हैं। श्री काछलिया भी उस सभामें एक वक्ता थे । उनके प्रति अपनी इस विनम्र श्रद्धांजलिके शब्द बोलकर लिखाते समय, अब भी उनकी आवाज मेरे कानोंमें गूँज रही है। उन्होंने कहा था : " मैं अल्लाहको हाजिर नाजिर मानकर कहना चाहता हूँ कि मैं एशियाई पंजीयन अधिनियमका पालन नहीं करूँगा, चाहे मेरा सिर धड़से अलग कर दिया जाये । एक ऐसे कानूनका पालन करना मैं नामर्दी और अपमानजनक मानता हूँ जो मुझे एक तरहसे गुलाम बना देता है ।" और वह उन मुट्ठी भर लोगों में से थे जो आठ वर्षोंकी लम्बी अवधि तक अकथनीय कष्ट भोगनेपर भी कभी विचलित नहीं हुए थे। श्री काछलियाने किसी भी तरह, किसीसे कम कष्ट सहन नहीं किया था । वे सोचते थे कि एक नेताके नाते उनका त्याग काफी बड़ा होना चाहिए और यदि इस देशके सम्मानको बचानेका सवाल हो तो उनको कोई भी त्याग करनेमें हिचकना नहीं चाहिये। उन्होंने अपनी सारी सम्पत्ति फूँक दी थी । उन्होंने जिन्दगीके वे सभी आराम छोड़ दिये थे जिनके वे आदी थे; और दिन-रात अपने पवित्र ध्येयके लिए काम- में जुटे रहते थे । इसीलिए समस्त दक्षिण आफ्रिकाके भारतीय समाजपर उनका प्रभाव आश्चर्यजनक रूपसे बढ़ गया था और भारतीय प्रतिनिधिके रूपमें उनका नाम लिया जाने लगा था । स्पष्ट ही है कि हिन्दुओं और मुसलमानों और समाजके अन्य तबकोंके बीच बहुधा विवाद खड़े होते रहते थे । श्री काछलिया परस्पर-विरोधी हितोंके बीच संतुलन


  1. प्रजाबन्धु, २७-१०-१९१८ और इंडियन रिव्यू,अक्तूबर, १९१८ में भी प्रकाशित हुआ था।
  2. अ० मु० काछलियाका निधन २० अक्तूबर, १९१८ को हुआ था।
  3. विलियम हॉस्केन, ट्रान्सवाल विधान सभाके सदस्य, देखिए खण्ड ७, पृष्ठ १३९-१४१।

Gandhi Heritage Portal