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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

संदेहकी दृष्टिसे देखा था, लेकिन बादमें काम देखकर उनका संदेह दूर हो गया था । बेतियाके सब-डिवीजनल अफसरके साथ बहुधा उनका सम्पर्क रहता था । वे अफसर मुझसे बहुधा कहते रहते थे कि आत्मत्यागपूर्ण व्यवहार और कामके प्रति उनकी निष्ठाके कारण डॉ० देव उन्हें बहुत पसन्द थे । कोई उन्हें पसंद किये बिना रह भी कैसे सकता था ? इसलिए कि वे असहाय ग्रामीणोंको चिकित्सीय परामर्श ही नहीं देते थे बल्कि स्वयं दवाइयाँ तैयार करके भी देते थे; उनके घर जाकर दवायें बाँटते थे । वे उनके गाँवकी सफाईका भी ध्यान रखते थे । वे स्वयं अपने हाथोंसे गाँवोंके कुएँ साफ करते और सड़कें बनाने में मदद करते थे । उन्होंने सर्वश्री सोमण और रणदिवेके साथ मिलकर भीतीहरवामें स्कूलकी फुसकी झोंपड़ी जल जानेपर कुछ ही दिनोंमें स्कूलके लिए एक पक्की इमारत खड़ी करके सभीको आश्चर्यचकित कर दिया था । शरीरसे कृश होते हुए भी वे स्वस्थ ग्रामीणोंके साथ जुटकर काम करते थे । उनसे प्रेरणा पाकर गाँवके लोग स्कूलके निर्माणमें हाथ बँटानेके लिए आगे आये थे। डॉ० देवके सम्बन्धमें मुझे सबसे सुखद अनुभव तब हुआ जब मैंने बेलगाँवके एक बी० ए०, एल एल०, बी० वकील, श्री सोमण द्वारा डॉ० देवको अर्पित की गई श्रद्धांजलि मेरे नाम उनके एक पत्रमें पढ़ी। डॉ० सोमण 'नेशनलिस्ट' विचारधाराके हैं। उन्होंने चम्पारनमें एक स्वयंसेवककी तरह काम किया है । वे स्वयं भी एक बड़े दृढ़ और सच्चे कार्यकर्त्ता हैं। उन्होंने अपने पत्र में कहा है कि पहले जब मैं डॉ० देवसे मिला तो 'नेशनलिस्ट' के बारेमें उनके दृष्टिकोणके कारण मुझे उनपर काफी सन्देह और अविश्वास था, लेकिन सन्देह और अविश्वासके स्थानपर पूर्ण विश्वास और सम्मान पैदा होनेमें चन्द दिन ही लगे । उनके अपने-अपने विचार तो दृढ़ ही रहे, पर मतभेदके होते हुए भी दोनों प्रगाढ़ मित्र बन गये । डॉ० देवमें कठमुल्लापन नहीं था । हृदय बड़ा दयालु और उदार था और इसीलिए उनमें अपने विरोधीके तर्कका अच्छा पहलू देख सकनेका दुर्लभ गुण विद्यमान था । उनकी मृत्युसे 'सोसाइटी' एक बड़े ही कुशल चन्दा उगाहनेवाले और प्रचारकसे वंचित हो गई है । वे सचमुच इन्सान थे ।

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी


[ अंग्रेजीसे ]
सवेंट ऑफ इंडिया, ३१-१०-१९१८