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६६. तार : वाइसरायको[१]

हालाँकि सभा इस कार्योंमें हर प्रकारसे सहायता पहुँचाई जाये । अक्तूबर २९, १९१८ है कि युद्ध सम्बन्धी सभा इसे साम्राज्यीय भी बिलकुल पक्की और कि भारत आर्थिक सहायताकी संघमें ब्रिटेनकी बराबरीका भागीदार बननेके इच्छुक भारतका एक कर्त्तव्य ही मानती है, लेकिन सभाकी यह सोचविचारके बाद बनाई गई राय है दिशामें और अधिक जिम्मेदारी नहीं उठा सकता । सभाकी यह बिलकुल पक्की राय है कि गरीबीको पूरी तरह नहीं प्रस्ताव पास किया है कि बैठकमें वित्तीय प्रस्ताव पास खर्चका बोझ अत्यधिक हो अधिक वित्तीय सहायता प्राप्त करनेका सबसे अच्छा तरीका यही है कि केवल गैर-सरकारी, स्वैच्छिक अंशदानोंपर निर्भर किया जाये । इसलिये सभाको आशा है कि कथित प्रस्तावको लागू न करने उसकी अपीलको सरकार मान लेगी ।

[ अंग्रेजीसे ]
बॉम्बे क्रॉनिकल, २९-१०-१९१८

६७. पत्र : पुण्डलीकको

आश्रम, साबरमती
अक्तूबर २९, [ १९१८]

भाई पुण्डलीक,

आपका पत्र बापूजीको बताया था । उससे उनको असंतोष हुआ है । उन्होंने आपको नीचे प्रमाणें संदेश भेजा है :

जगत् में मनुष्यको बहुत-सी अन्यान्य वस्तुओंके संबंध में आना पड़ता है, लेकिन हरेकमें पड़ना उसको आवश्यक नहीं है। सिर्फ कर्त्तव्यकी बाबतोंमें पड़ना उसे मंजूर है, बिना कर्त्तव्य जो कोई आदमी इन बाबतोंमें पड़े तो वह न्यायमार्गी नहीं है । वह अभिमानी है । आपका कर्त्तव्य सिर्फ लड़कोंको सिखानेका और आरोग्य संरक्षण और १. यह तार गुजरात सभा के अध्यक्षको हैसियत से गांधीजीने भेजा था ।


  1. १. यह तार गुजरात सभा के अध्यक्षको हैसियत से गांधीजीने भेजा था।

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