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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

स्वच्छता रक्षणका है। इस क्षेत्रका उल्लंघन आप नहीं कर सकते हैं। इसलिए आपने जो पुलिसको रोका और मवेशियोंको छुपाया वह ठीक नहीं किया । मानो पुलिसको रोकनेके लिए आपकी ऊपर कुछ भी नालिश नहीं की जाये। लेकिन नालिश न करना यह आपको और भी अत्याचारोंमें फंसाना ही है--ऐसी रीतिसे लिखते रहिएगा, लेकिन शालाका कार्यक्षेत्र छोड़के कभी किसी भी कार्यमें हाथ मत डालिएगा। इसके सिवाय दूसरा आपका कर्त्तव्य नहीं है । साहेबकी ऊपर रोष करना वह भी आपका कर्त्तव्य नहीं है । भविष्य में आप बहुत सावधानी से बर्ताव चलावेंगे ऐसी आशा है । यही महात्माजीका आदेश है। आप इसको शिरोधार्य करेंगे। वे आपको स्वयं लिखते लेकिन उनके हाथ और उंगली में उतनी ताकत नहीं है ।

काकासाहेब[१]आज बीमार हैं । इन्फ्लुएन्जा ही होगा ।

आपका,
महादेव देसाई

महादेव देसाईके स्वाक्षरोंमें मूल पत्र ( जी० एन० ५२२१)की फोटोनकलसे ।

६८. पत्र : हरिलाल गांधीको

[ अहमदाबाद ]
अक्तूबर ३१, १९१८

तुम्हारा पोस्टकार्ड मिला । आज लिखनेकी कोई खास बात नहीं सूझती । यही सोचा करता हूँ कि तुम कैसे स्वस्थ होओ और बने रहो। अगर मैं अपने किसी भी वाक्यसे तुम्हें स्वस्थ बना सकूं और वह वाक्य मुझे मालूम हो जाये, तो तुरन्त लिख डालूं । मैं नहीं जानता, तुम यह समझे हो या नहीं कि यह संसार कैसा है । परन्तु मुझे तो उसका क्षण-प्रतिक्षण सूक्ष्म दर्शन होता रहता है । और ऋषि-मुनियोंने उसका जैसा वर्णन किया है मैं उसे ठीक वैसा ही देखता हूँ, और यह मैं इतनी सूक्ष्मतासे देख सकता हूँ कि मुझे उसमें जरा भी रस नहीं आता। जबतक शरीर है, तबतक प्रवृत्ति तो रहेगी ही । [ इसलिए] जहाँतक हो सके अधिकसे-अधिक शुद्ध प्रवृत्तियोंमें ही लगे रहें, यहीं मुझे पसन्द है । यह कहने में जरा भी अतिशयोक्ति नहीं है कि ऐसी प्रवृत्तियोंमें लगे रहने के लिए आवश्यक संयम पालन करनेमें मुझे बड़ा आनन्द आता है । यह बात जिस हद तक समझी जा सके और उसपर अमल हो सके, उसी हद तक मनुष्य सच्चा सुख पा सकता है। अगर इस संकटसे[२]तुम्हारी मनःस्थिति ऐसी हो जाये कि तुम उस सुखके भोक्ता बन सको, तो इस संकटको भी लगभग स्वागत


  1. कालेलकर।
  2. इस समय के आसपास हरिलाल गांधीकी पत्नीकी मृत्यु हो गई थी; गांधीजीका इशारा सम्भवतः उसी ओर है।