अपनी बीमारीके लौटकर आनेके लिए मैं डॉक्टर मित्रोंके अज्ञानको जिम्मेदार नहीं ठहरा सकता । वे तो उनके शब्दोंमें मेरे 'सनकीपन' के कारण विवश हैं। फिर भी वे मेरे अंग- जैसे बन गये हैं और जब मैं अपार वेदना अनुभव करता हूँ, तब मुझे भरसक आराम देते हैं । मोतीहारीके पादरी हॉजके लिखे हुए पत्रमें स्व० डॉ० देवके बारेमें जो उल्लेख है, वह उद्धृत करके भेजता हूँ। वे बड़े ही स्वतंत्र प्रकृति और उदार विचारोंके पादरी हैं। आशा है कि आपकी तबीयत अच्छी होगी, या सार्वजनिक कार्योंका भारी बोझ सँभालते हुए जितनी अच्छी रह सकती है, उतनी अच्छी होगी ।
आपका,
- महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरी से ।
- सौजन्य : नारायण देसाई
७१. सन्देश : स्वदेशी-स्टोरके खुलनेपर[१]
नवम्बर १४, १९१८
मैं बिस्तरेपर पड़ा हुआ हूँ और आ नहीं सकता, फिर भी मेरी आत्मा वहीं है । यदि आप स्वदेशी वस्तुओंपर श्रद्धा रखेंगे तो वह अवश्य फलीभूत होगी । यदि स्वदेशीके प्रति हमारा प्रेम सच्चा हो तो हम विदेशी वस्तुओंका इस्तेमाल कर ही नहीं सकते । दूसरे, मेरी यह इच्छा है कि अभी स्टोरका और अधिक विस्तार किया जाये। जब लोग धार्मिक दृष्टिसे स्वदेशीका पालन करेंगे तभी देश समृद्ध होगा ।
- [ गुजरातीसे ]
- प्रजाबन्धु, १७-११-१९१८
७२. सन्देश : प्रथम रेलवे सम्मेलनको[२]
[ नवम्बर १६, १९१८ से पूर्व ]
तबीयत ठीक न होनेके कारण उपस्थित न हो सका, इसका मुझे दुःख है । रेलवे सम्बन्धी सुधारके दो विभाग किये जा सकते हैं: एक तो सरकारसे न्याय प्राप्त करना और दूसरा यात्रियोंके अज्ञानको दूर करना । स्वराज्यकी कुंजी स्वावलम्बनमें है ।
- [ गुजरातीसे ]
- गुजराती, २४-११-१९१८