पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 15.pdf/९५

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७३. पत्र : पुण्डलीकको सत्याग्रहाश्रम साबरमती प्रिय भाई पुण्डलीक, नवम्बर, १७ [१९१८] आपका पत्र पू० गांधीजीको मिला। आपके काकासाहबको भेजे सब पत्र भी उन्होंने पढ़े हैं। उनका विचार ऐसा है कि आप शान्त भावसे देखते रहें और अविक्षिप्त चित्तसे कार्य करते रहें। आपके बारेमें जो कुछ करना है सो बाबू ब्रजकिशोर और बाबू राजेन्द्रप्रसाद' करेंगे । उनको यहाँसे पत्र लिखे गये हैं । आप भी गोरख बाबूसे मिलकर दोनोंको खबर देते रहियेगा । आपका अच्छी तरहसे बचाव करनेका निश्चय हुआ है । अभी आपके बारेमें सरकारको लिखना अच्छा नहीं है । आपका, महादेव देसाई (गांधीजीकी आज्ञासे) महादेव देसाईके स्वाक्षरोंमें मूल पत्र ( जी० एन० ५२१९) की फोटो नकलसे । ७४. पत्र : मुहम्मद अलीको आश्रम नवम्बर १८, १९१८ प्रिय मित्र, मानो युगों बाद आपका पत्र मिला। उसे पाकर मुझे बहुत ही प्रसन्नता हुई । आपके पत्रोंसे मेरे प्रति आपका जबरदस्त प्रेम टपकता है । इसके लिए मैं बहुत ही आभारी हूँ । आपके प्रेमके प्रतिदानमें यदि में अपनी प्रतिज्ञाके शब्दार्थकी, जैसा आप बताते हैं, वैसी कुछ तोड़-मरोड़कर भी कर सकूँ, तो उसके लिए मैं खुशीसे तैयार हो जाऊँगा । किन्तु अपने-आप लगाये हुए व्रतके अंकुशसे बचनेका कोई रास्ता नहीं है । जो व्रत मैंने खूब विचारपूर्वक और उसके सम्भावित परिणाम ध्यानमें लानेके बाद लिया है, १. बाबू ब्रजकिशोरप्रसाद; दरभंगाके एक प्रमुख वकील। बिहार और उड़ीसा विधान परिषद् के सदस्य; १९१७ में चम्पारन सत्याग्रहमें गांधीजी के साथ काम किया था । २. भारतके भूतपूर्व राष्ट्रपति । ३. गोरखप्रसाद (१८६९ - १९६२ ); मोतीहारीके एक वकील, गांधीजी मोतीहारीमें कुछ दिन उनके मेहमान रहे थे । १५-५ Gandhi Heritage Portal