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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

उस व्रतकी उपेक्षा करूँ, तो मैं ईश्वरके प्रति, मानव-जातिके प्रति और स्वयं अपने प्रति झूठा साबित होऊँगा । अगर मित्रोंके आग्रहवश में अपने व्रतोंमें हेर-फेर कर डालूं तो मेरी जो कुछ उपयोगिता है, वह समूल नष्ट हो जायेगी । इस बीमारीको मैं अपने लिए एक परीक्षा और प्रलोभनका प्रसंग मानता हूँ । इस समय तो मुझे मित्रोंके प्रार्थनामय समर्थन और प्रोत्साहनकी जरूरत है । मैं आपको यकीन दिलाता हूँ कि व्रतोंके बन्धनोंकी मर्यादामें रहते हुए इस शरीरको बनाये रखनेके लिए जितनी भी सावधानी रखी जा सकती है, उतनी सब में रख रहा हूँ । अब मुझे एक डॉक्टर मित्र मिल गये हैं, जो मालिशसे, बरफसे और गहरे श्वासोच्छ्वाससे मेरी शक्ति वापस ला देनेकी जिम्मेदारी लेते हैं। उनका खयाल है कि दो महीने के भीतर मेरे शरीरमें इतना खून भर जायेगा और मेरा वजन इतना बढ़ जायेगा कि मैं चल-फिर सकूंगा और साधारण मानसिक श्रम बरदाश्त कर सकूंगा । उनकी चिकित्सा मुझे बुद्धि युक्त और स्वाभाविक मालूम होती है । और बड़ी बात यह कि उसमें मेरा विश्वास जम गया है। भोजनके उचित हेरफेरसे मैं आशा रखता हूँ कि इन मित्रकी भविष्यवाणी सही साबित होगी । आपपर लगाये गये अभियोग मैंने पढ़वाकर सुन लिये हैं। इससे ज्यादा लचर और छिछला अभियोगपत्र मैंने पढ़ा ही नहीं । मेरा खयाल है कि आपका जवाब स्पष्ट, सीधा और गरिमापूर्ण होगा। मुझे तो साफ दीखता है कि कमेटी इसलिए नियुक्त की गई है कि सरकारको इस मुश्किलसे निकल जानेका बहाना मिल जाये । जो भी हो, हम तो अब कमेटीके निष्कर्षोंके बारेमें पूरी तरह उदासीन रह सकते हैं। आपकी सफाई इतनी जोरदार है कि कमेटीका निष्कर्ष हमारे विरुद्ध हो तो एक ऐसा आन्दोलन खड़ा किया जा सकता है जो सारे देशको उस घोर अन्यायके प्रति क्रोधसे भर देगा जिसे आप इतने अर्से से धीरजके साथ सहते रहे हैं। मुझे लगता है कि आपका जवाब तैयार करनेमें आपकी मदद के लिए मैं आपके पास छिन्दवाड़ामें होता तो अच्छा रहता, लेकिन वैसा बदा नहीं था ।

अम्मी साहिबाको मेरा आदाब कहिए। आप सबसे, बच्चोंसे मिलने और आपके निकट सम्पर्क में आनेके लिए मैं लालायित हूँ। जैसा मैंने लखनऊकी सभामें कहा था, आपकी मुक्तिमें मेरा हेतु बिलकुल स्वार्थपूर्ण है । हमारा ध्येय एक ही है और उस ध्येय तक पहुँचनेके लिए मैं आपकी सेवाओंका पूरा उपयोग करना चाहता हूँ । हिन्दू- मुस्लिम प्रश्नके उचित हलमें ही स्वराज्यकी प्राप्ति है । परन्तु इस बारेमें जब हम मिलेंगे तभी; आशा है कि हम जल्दी मिलेंगे ।

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

[ अंग्रेजीसे ]
महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे ।
सौजन्य : नारायण देसाई

तथा नेशनल आर्काइव्ज़ ऑफ इंडिया : होम : पॉलिटिकल : डिपाजिट : दिसम्बर,१९१८ : संख्या ३ से भी ।