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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


मुझे इस बातकी प्रसन्नता है कि तुम्हारा स्वास्थ्य अब अच्छा है। क्या तुम्हें वहाँ सब प्रकारकी सुविधा प्राप्त है? अगर तुम अपनी जरूरतें मुझे नहीं बताती रहोगी तो रानी बिटिया नहीं कहलाओगी। अगर तुम्हें रुपयोंकी आवश्यकता हो तो मुझसे कहने में संकोच मत करना।

सभी अंग्रेजी पढ़नेको लालायित हैं यह एक विचित्र सी बात है। सीमाके अन्दर रहते हुए ही तुम्हें उनकी इच्छाएँ पूरी करनी है। कौन-कौन अंग्रेजी पढ़नेके इच्छुक हैं, उस बारेमें कुछ विस्तारके साथ लिखना।

सस्नेह,

तुम्हारा,

बापू

नेशनल आर्काइव्ज़ ऑफ इंडियामें सुरक्षित हस्तलिखित मूल अंग्रेजी पत्रकी फोटो- नकल तथा माई डियर चाइल्डसे।

४६. सर शंकरन् नायर और चम्पारन

इस बार भी दोनों पक्ष -- जिसमें एक ओर सर शंकरन हैं और दूसरी ओर उनके सहयोगी -- वही तर्क दोहरा रहे हैं जो खेड़ाके बारेमें दिये गये थे। सर शंकरन्‌का कथन है कि नौकरशाहीने [ चम्पारनके मामलेमें ], कांग्रेस या दूसरे शब्दोंमें कहें तो शिक्षित भारतीयोंके जबरदस्त दबाव से मजबूर होकर ही कोई कदम उठाया था। उधर उनके साथियोंका कहना है कि नौकरशाही जन-साधारणके हितोंके प्रति सदैव सजग रही है। शिक्षित भारतीयोंने जनताका प्रतिनिधित्व कभी नहीं किया और न उन्हें उसके हितोंकी कोई परवाह ही रही है। इसके अतिरिक्त, जहाँतक खेड़ाका सम्बन्ध है, नौकरशाहीके पक्षमें कहा जाता है कि एक तो उन्होंने किसानोंके लिए अगर कुछ नहीं किया तो उसका कारण यह था कि अधिकारियोंको किसानोंकी शिकायतों में विश्वास नहीं था, और दूसरे अगर कोई कहे कि कुछ किया तो गया था, तो उसका जवाब यह है कि जो कुछ किया गया सो इस कारण नहीं कि माननीय श्री गोकुलदास तथा अन्य शिक्षित भारतीय और संघर्षकी आखिरी मंजिलमें श्री गांधी बीचमें पड़े थे, बल्कि वास्तवमें अगर ये लोग बीचमें न पड़ते तो भी नौकरशाही स्वयं वैसा ही करती। चम्पारनके मामले में किसानोंको कष्ट है - यह बात मान ली गई है, परन्तु नौकरशाहीके हिमायतियों द्वारा यह भी कहा जाता है कि उनके बारेमें सरकारने जो भी कदम उठाये वे कोई श्री गांधीके बीचमें पड़नेके कारण नहीं। सर शंकरन नायरका उक्त दोनों मामलोंके सम्बन्धमें यह कथन है कि नौकरशाहीने किसानोंके लिए जो कुछ भी किया वह जन- साधारणके हितोंको सदा सामने रखनेवाले शिक्षित भारतीयोंके कठिन परिश्रमका ही परिणाम है।

मैं समझता हूँ कि यह बात में स्पष्ट रूपसे समझा सका हूँ कि खेड़ाके किसानों के कष्ट वास्तविक थे और यह भी कि सरकारसे जो कुछ राहतें प्राप्त हुईं वे एक जबरदस्त