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पत्र : एस्थर फैरिंगको


भेंट करने और किसी महिला द्वारा अथवा स्वयं मुझे आकर कताई सिखानेकी अनुमति मिल सके तो इसे मैं अपने लिए सम्मानकी बात मानूंगा? मैं यहाँ कह दूं कि कताई - कला सीखना बहुत ही सहज है।[१]

हृदयसे आपका,

टाइप की हुई अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ६८२६) की फोटो नकलसे।

४५. पत्र : एस्थर फैरिंगको

[ अगस्त २५, १९१९ के बाद ][२]

रानी बिटिया,

तुम मुझे काफी नियमित रूपसे लिखती रही हो मगर में नियमित रूपसे नहीं लिख पाया। कारण तुम जानती हो।

मुझे जो कष्ट हुआ था वह कुछ विशेष नहीं था। छोटालालने उसे बहुत मान लिया था। मैं शरीरकी जितनी चाहिए उतनी सँभाल कर रहा हूँ।

मैं समझता हूँ कि बोर्ड या श्री बिटमैनको तुम्हारा जल्दी ही कोई अन्तिम उत्तर देना जरूरी नहीं है। तुम्हारा मामला थोड़ा जटिल है। मैं चाहता हूँ कि बोर्ड के प्रति तुम्हारा व्यवहार पूरी तरह सच्चा और वफादारीसे भरा हुआ हो। मैं यह भी चाहता हूँ कि उन लोगोंको किसी भी प्रकार यह न लगने पाये कि तुमने कोई अशोभनीय कार्य किया है। क्या मैं श्री बिटमैनको (क्या मैंने उनके नामके हिज्जे ठीक-ठीक लिखे हैं? तुम्हारा पत्र मेरे पास नहीं है ) तुम्हारे बारेमें पत्र लिखूं जैसा कि मैंने गवर्नरको[३] लिखा था? भारतके प्रति तुम्हारी सेवा एक सच्चे डेन और ईसाईके योग्य होनी है। तुमने सेवा कार्य इसलिए अपनाया है कि तुम्हारी ईसाइयत तुम्हें ऐसा करनेको प्रेरित करती है। और तुम्हारा वैसी भावना रखना पर्याप्त भर नहीं है। आवश्यकता इस बातकी है कि तुम्हारे अपने लोग तुम्हारे स्नेह, नम्रता और उदारताको महसूस करते हुए तुम्हारी सेवा भावनाको समझें।

इस कामको करनेका सबसे अच्छा तरीका कौन-सा है सो मैं नहीं जानता। कुछ भी हो, उनको लिखे तुम्हारे पत्र विनम्रता, सचाई और उदारतासे भरे होने चाहिए, न कि सख्त, कटु या निन्दासूचक। आखिर तुमने जो रास्ता अख्तियार किया है वह एक तरह से बगावतका है और वह उचित तभी माना जा सकता है जब तुम्हारे मार्गको दानियाल और बनियनकी भाँति धार्मिक अर्थ में सफलता प्राप्त हो।

  1. ऐसा लगता है कि गांधीजीने इसी सिलसिले में सितम्बर १६ को एक पत्र फिर लिखा था, लेकिन वह उपलब्ध नहीं है।
  2. एस्थर फैरिंगने अपने २५ अगस्तके पत्र में भारतमें रहने तथा समाज-सेवा करनेकी इच्छा व्यक्त की थी। इस पत्र में गांधीजीने उसीका उल्लेख किया है।
  3. देखिए "पत्र : लोर्ड विलिंग्डनके निजी सचिवको", २२-८-१९१९