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सर शंकरन् नायर और चम्पारन


संघर्षके बाद ही मिलीं; और जो अल्प राहत दी गई वह नौकरशाहीके दिमागके ओछेपनका प्रमाण है। खेड़ाके किसानोंकी शिकायतें बहुत पुरानी नहीं थीं और उनके प्रति उच्चतम अधिकारीके मनमें भी मात्र उपेक्षाका भाव था। लॉर्ड विलिंग्डनने, जो स्वयं एक सदाशय व्यक्ति हैं, अपने उन हठी सलाहकारोंके सामने सिर झुका दिया था जो खेड़ाके मामले से सीधा सम्बन्ध रखते थे। इसलिए खेड़ाकी समस्याको सुलझाना मेरे लिए काफी आसान काम था। चम्पारन में शिकायतें पुरानी थीं, संघर्ष त्रिकोणात्मक था-- जिसमें निहित बड़े-बड़े स्वार्थ मिलकर रैयतके हितोंका विरोध कर रहे थे। परन्तु मुझे यह कहने में प्रसन्नता होती है कि बिहार सरकारके सर्वोच्च अधिकारी सर एडवर्ड गेट दृढ़ व्यक्ति थे; वे अपने सलाहकारोंकी सलाहको यों ही नहीं मान लिया करते थे; वे उनके द्वारा शासित नहीं होते थे बल्कि उनपर शासन करते थे और वे अपने प्रभावको यथासम्भव रैयतके हितोंमें प्रयुक्त करनेमें हिचकतें नहीं थे। यदि उनकी जगह कोई और व्यक्ति होता या उनकी अपेक्षा कम सहानुभूतिवाला या उससे कम मजबूत आदमी होता तो चम्पारन-संघर्षका इतिहास भिन्न और अधिक दुःखद होता। उसके परिणाम बहुत भयंकर होते। इसीलिए सर शंकरन नायरने चम्पारन रिपोर्ट- पर अन्य सदस्योंसे असहमति प्रकट करते हुए जो टिप्पणी लिखी थी, उसके जवाब में दी गई बिहार सरकारकी टिप्पणीकी आलोचना करते हुए मुझे दुःख होता है। सरकार रैयतकी तकलीफों और शिकायतोंको स्वीकार करती है, लेकिन उसका कहना है कि वह तो खुद ही शिकायतोंको रफा करनेवाली थी; बस जमीनके नये बन्दोबस्तका जो काम उसने उठाया था उसके पूरा होते ही वह उन शिकायतोंको दूर कर देती। उसने जो कुछ राहत दी है उसमें मेरे (अर्थात् श्री गांधीके) हस्तक्षेपको कोई श्रेय नहीं है। मेरे लिए इस मामलेमें कुछ कहना कठिन हो गया है, क्योंकि मैं जाँच-समितिका एक सदस्य था। जो कागजात सरकार द्वारा समितिके समक्ष पेश किये गये थे परन्तु स्वभावतः जिन्हें समितिकी रिपोर्ट में शामिल नहीं किया गया है उनका उपयोग करनेमें में असमर्थ हूँ। इसलिए जितनी रिपोर्ट प्रकाशित हुई है मुझे उसके बाहर नहीं जाना है। बिहार सरकारकी टिप्पणीमें जमीनके नये बन्दोबस्तको बहुत महत्त्व दिया गया है। मेरा निवेदन यह है कि [ चम्पारनमें] नये बन्दोबस्तके कामका इस संघर्षमें निहित बड़े-बड़े प्रश्नोंसे कोई सम्बन्ध नहीं था। बंगाल काश्तकारी अधिनियमके अन्तर्गत, जो बिहारपर भी लागू है, नया बन्दोबस्त - स्थायी भूस्वामीको प्रत्येक काश्तकार द्वारा अदा किये जानेवाले लगानमें वृद्धिको नियन्त्रित करनेके उद्देश्य से निर्धारित अवधिके अन्तरसे -- स्वतः होता ही रहता है। स्थायी स्वामित्ववाली बड़ी-बड़ी जोतें जिन काश्तकारोंको बँटी हुई हैं, उन काश्तकारोंकी स्थिति बंगालके इस्तमरारी बन्दोबस्तके अन्तर्गत जरा भी मजबूत नहीं हुई है। चम्पारनमें भूमिके स्थायी पट्टेदार यूरोपीय बागान मालिक हैं। वे राजाओंकी तरह हैं; और यद्यपि इन यूरोपीय जमींदारोंको कानूनने रैयत अर्थात् किराएदारोंके ऊपर किसी प्रकारके फौजदारी या दीवानी अधिकार नहीं दे रखे हैं तथापि वे लोग व्यवहारतः चम्पारनके नितान्त दीन-हीन किसानोंपर दोनों प्रकारके अधिकारोंका प्रयोग किया करते हैं।