पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 16.pdf/१०६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
७४
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय
कर रही है वैसी सहायता के बिना सरकार कुछ नहीं कर सकती। सरकारी यन्त्रकी बनावट ही ऐसी है कि वह धीमी गति से चलता है। वह घूमता है, अवश्य घूमता है, किन्तु कमसे कम अवरोधकी दिशामें। मेरे जैसे सुधारकोंके प्रति, जिनके पास वर्तमान सुधार कार्य करने के अलावा कोई और काम नहीं है, असहिष्णु हो उठना, अथवा उनकी सहायताके बिना भी काम कर सकनेकी अपनी सामर्थ्यपर गलत विश्वास करना शायद सरकारकी गलती होगी। मुझे आशा है कि इस मामले में उक्त दोनों बातों में से एक भी घटित नहीं होगी, और जो शिकायतें मैं पहले ही सरकारके सामने रख चुका हूँ, और जिन्हें स्वीकार भी किया जाता है, वे कारगर ढंगसे दूर की जायेंगी। तब बागान मालिकोंको उस मण्डलीके प्रति, जिसके नेतृत्वका भार मुझपर है, भय या शंका रखनेका कोई कारण नहीं रह जायेगा, और वे सहर्ष स्वयंसेवकों की सहायता स्वीकार करेंगे। ये स्वयंसेवक गाँववालोंमें शिक्षा-प्रसार और सफाईका काम करेंगे और बागान मालिकों और रैयत के बीच कड़ीका काम अदा करेंगे।

मुझे इस बातका हार्दिक खेद है कि विवश होकर बिहार सरकारके वक्तव्यकी नुक्ताचीनी करनी पड़ी। परन्तु में इस बातपर दुःखी हुए बिना नहीं रह सकता कि एक निन्द्य उद्देश्यका समर्थन करनेकी उधेड़-बुनमें सरकारने ऐसे सदनुष्ठानको नगण्य सिद्ध करनेकी चेष्टाकी जो किसी भी अर्थ में राजनीतिक उद्देश्यसे प्रेरित नहीं था। यह अनुष्ठान केवल मानव-सेवाकी भावना से प्रेरित होकर ही हाथमें लिया गया था और इसका लक्ष्य न केवल काश्तकारोंके कष्ट दूर करना था बल्कि उन्हें शिक्षित करना, उन्हें स्वच्छता सिखाना और उनके सामान्य उत्थानके तरीके खोज निकालना भी था; फिर चाहे इस कार्य में उन स्वयंसेवकोंको सरकार या बागान मालिकोंका सहयोग मिलता चाहे न मिलता। यद्यपि मैं अन्य-दूसरे कामोंमें लग गया लेकिन वह रचनात्मक कार्यक्रम अबतक चालू है। मेरे सहयोगी जबरदस्त कठिनाइयोंके बावजूद काश्तकारोंके बीच अब भी पाठशालाएँ चला रहे हैं। स्थानीय सरकार यह बात जानती है और उसे यह भी मालूम है कि मैंने प्रयासपूर्वक अपने अनुष्ठानको राजनीतिक अखाड़ेसे दूर रखा था। जहाँतक मुझसे बन पड़ा वहाँतक मैंने अपने कार्यसे सम्बन्धित कोई चीज यथासम्भव समाचारपत्रों में प्रकाशित नहीं होने दी थी; और काश्तकारोंकी ओरसे जो अनेक पत्र मैंने सरकारको लिखे हैं उन्हें प्रकाशित करानेका लोभ होते हुए भी मैं अभी वैसा नहीं कर रहा हूँ। भारत सरकारका हाल तो उस व्यक्ति जैसा है जो उसी डालको काट रहा है जिसपर वह बैठा है। सर शंकरन नायरने स्पष्ट सत्य ही सामने रखा है। उसके समर्थनमें उन्होंने दो बहुत प्रभावकारी उदाहरण भी दिये हैं। यदि भारत सर कार उनकी प्राप्ति सूचना नहीं दे सकती थी, तो उसके लिए शोभाजनक और शानदार बात यही होती कि कमसे कम चुप तो बनी रहती।

[ अंग्रेजीसे ]

यंग इंडिया, २७-८-१९१९