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पत्र : 'टाइम्स ऑफ इंडिया' को


किस तरह और किसने दक्षिण आफ्रिकापर विजय पाई, इस प्रश्नकी चर्चा करना मेरे लिए व्यर्थ है। लेकिन "यूरेका" की एक भ्रान्ति दूर करनेके लिए यह बतलाना चाहूँगा कि स्वर्गीय सर जॉर्ज व्हाइटके अधीन भेजी वह सहायता भारतसे ही गई थी जिसके फलस्वरूप लेडीस्मिथ [नगर] की रक्षा हो सकी और शायद उसके कारण ही युद्धका पासा पलटा था। "यूरेका" को मैं यह भी बतला दूं कि सर जॉर्ज व्हाइट अपने साथ जिन १०,००० सैनिकोंको ले गये थे उनमें बहुतसे भारतीय सहायक भी थे; और वे सैनिक अभियानके लिए इतने ही जरूरी थे जितने कि अन्य सैनिक। इतना ही नहीं है, जिस समय लेडीस्मिथका भाग्य अधर में लटका हुआ था, और कोलेंजोकी लड़ाईमें विपरीत परिस्थितिका सामना करते हुए जब स्वर्गीय लेफ्टिनेन्ट रॉबर्ट्सकी बन्दूकें छिन गई थीं, उस समय करीब १,२०० भारतीयोंकी एम्बुलेन्स टुकड़ीके साथ मैं वहाँ था।[१] इस टुकड़ी में स्वतन्त्र और गिरमिटिया, शिक्षित और अशिक्षित सभी वर्गोंके भारतीय थे। आज आफ्रिकामें जिन लोगोंके सिरपर अपनी रोजी खो बैठनेका खतरा मँडरा रहा है उनमें कुछ ऐसे हैं जिन्होंने लेफ्टिनेन्ट रॉबर्ट्सको युद्धभूमिसे मरणासन्न अवस्थामें स्ट्रेचरपर लादकर वहाँसे हटाया था। इस टुकड़ीने स्पियनकॉपकी पराजयके समय भी मैदान में सेवा की थी। हमें मैदानमें गोलाबारीकी सीमाके बाहर रहकर काम करनेके लिए भरती किया गया था, लेकिन यह इसलिए नहीं कि हमें कोई आपत्ति थी, बल्कि हमें सैनिक ढंगकी कोई शिक्षा नहीं मिली थी इसलिए अधिकारी लोग ही हमारी जानको जोखममें नहीं डालना चाहते थे। तथापि कर्नल गालवेने सन्देश भेजा कि हालांकि हम गोलाबारीके क्षेत्रमें काम करनेको बाध्य नहीं हैं, लेकिन अगर हम पहाड़ीके नीचे युद्धभूमिके अस्थायी अस्पतालमें पड़े हुए घायलोंको हटा सकें तो जनरल बुलरको खुशी होगी। बोअर लोगोंके पहाड़ीपर से नीचे उतर आनेका अन्देशा था; पर बिना जरा भी हिचके, बल्कि इस अवसरसे खुश होकर मेरे साथके प्रत्येक आदमीने इसपर अमल किया और घायलोंको वहाँसे हटाकर २४ मील दूर फ्रीयर कैम्पस्थित अस्पतालमें पहुँचाया। इन घायलोंमें स्वर्गीय जनरल वुडगेट और उनके अधीनस्थ लड़नेवाले बहादुर अफसर भी थे। अंग्रेजी अखबार और राजनीतिज्ञ भारतीय स्वयंसेवकोंके उस विशुद्ध सेवा कार्यसे इतने प्रफुल्लित हुए कि कई कविताएँ इसकी प्रशंसामें रची गईं; जिसका भाव था "आखिर हम साम्राज्य के ही बेटे तो हैं।" जिन भारतीयोंके लिए ये पंक्तियाँ लिखी गई थीं, अब क्या वे यह गायेंगे कि "आखिर हम साम्राज्यके गुलाम ही तो हैं?" यदि भारतकी अंग्रेज और भारतीय जनता आसन्न संकटको समाप्त करनेके लिए जबरदस्त प्रयत्न नहीं करती है तो दक्षिण आफ्रिकाके भारतीय प्रवासी पूर्णतः गुलामोंकी स्थितिको ही प्राप्त हो जायेंगे। मेरी रायमें दक्षिण आफ्रिकाके यूरोपीय व्यापारियोंका पक्ष इतना कमजोर है कि यदि हम केवल लगातार शान्ति और सचाईके साथ उसकी असलियत सारे साम्राज्य के सामने प्रकट करते रहेंगे तो उनकी दलीलें अपने आप ढह जायेंगी।

आपका,

मो० क० गांधी

[ अंग्रेजीसे ]

यंग इंडिया, ३-९-१९१९

  1. देखिए खण्ड ३, पृष्ठ १३८-३९, १४७-४८, १५७-५८