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दूसरे पक्षकी भी बात सुनिए

इसी कारण इन लोगों को दण्डित करना चाहिए कि कुछ बदमाशोंने, जिनके सिर उस समय पागलपन सवार था, स्टेशन जाकर रेलकी पटरियाँ उखाड़ फेंकी? पाटीदारों और बनियों तथा इस अपराधके लिए दोषी लोगोंके बीच, कोई सम्बन्ध सिद्ध नहीं किया जा सका है। हम इस मामले की जानकारी देनेकी दृष्टिसे जो बहुत ही उपयुक्त कागजात छाप रहे हैं, उन्हें देखनेसे इसका असली कारण मालूम हो जायेगा। इंस्पेक्टर जनरल ऑफ पुलिसने बिना किसी सबूत-शहादतके इन विभिन्न अपराधोंके सम्बन्धमें यहाँतक कह डाला कि

जहाँतक जाँच की जा सकी है, उससे प्रकट होता है कि श्री मो० क० गांधी और उनके अनुगामियोंकी सीखोंके कारण खेड़ा और अहमदाबाद जिलोंमें अराजकताकी जो एक भावना व्याप्त हो गई है, अलग-अलग होनेवाली ये घटनाएँ भी उसी भावनाका विस्फोट थीं।

यह बात तो वैसी ही हुई जैसे कोई कौआ किसी डालपर बैठ जाये और वह डाल टूट जाये और इस आधारपर कोई यह कहे कि कौएके बैठनेसे ही टूटी है। मैं तो देश के सामने पिछले चार वर्षोंसे उसके कर्त्तव्य रखता आ रहा हूँ; अफसोसकी बात तो यह है कि मेरे ज्यादा अनुगामी नहीं हैं। यदि मेरे पास काफी संख्या में प्रबल अनुगामियोंका एक सुसंगठित दल होता तो मैं अराजकता और अव्यवस्थाको बिलकुल ही असम्भव बना देता और इंस्पेक्टर जनरल ऑफ पुलिसके पास कोई काम न बचता। लोगोंको मैं जो सिखाता हूँ वह तो यह है कि "हर हालत में सत्यपर दृढ़ रहो और कभी किसी व्यक्ति या उसकी सम्पत्तिको क्षति न पहुँचाओ।" जब खेड़ामें या अहमदाबाद के हजारों मिल मजदूरोंके बीच मेरी सीखपर बड़ी मुस्तैदीसे अमल किया जा रहा था, उस समय किसी प्रकारकी अव्यवस्था देखने में नहीं आई। उन्होंने एक चींटी तकको त्रास नहीं दिया। और कलक्टरके पत्रमें जो विवेकहीनता आद्योपान्त झलक रही है उसके सामने तो इंस्पेक्टर जनरल ऑफ पुलिसके शब्द भी मात हैं। अतिरिक्त पुलिस तैनात करने और सामूहिक दायित्व लादनेकी सलाह देते हुए उन्होंने जो कारण बताये हैं, उनमें से एक यह है:

रेलकी पटरियाँ निस्सन्देह नडियादवालोंने उखाडी, जिन्हें जल्दी ही विशेष न्यायाधिकरण के सामने पेश किया जायेगा। इनमें से अधिकांश पाटीदार हैं।

ये वाक्य जिस पत्रसे लिये गये हैं वह २६ मईका है। इस तारीखतक गिरफ्तार-शुदा लोगोंकी पेशी भी नहीं हुई थी फिर भी वे बड़े दावेके साथ फरमाते हैं कि पटरियाँ नडियादवालोंने उखाड़ी, जिनमें अधिकांशतः पाटीदार लोग थे। भला इस कदर उतावली दिखानेकी क्या जरूरत थी। सम्बन्धित कागजोंको देखनेसे ज्ञात होता है कि एक ओर तो वे खुद यह कहते हैं:

चूंकि सभी अपराधोंसे सम्बन्धित मामले एक विशेष न्यायाधिकरणके विचाराधीन हैं, और इन मुकदमोंके परिणामोंका असर इस पूरे सवालपर पड़ सकता है इसलिए किसी भी निष्कर्षपर पहुँचने में जल्दबाजी दिखाना मुझे पसन्द नहीं है। उदाहरण के लिए यदि किसी विशेष मामले में अपराधियोंके सरगनोंको दोषी

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