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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

ठहराया जाकर माकूल सजा दे दी जाती है तो यह सवाल उठ सकता है कि विशेष पुलिस तैनात करना आवश्यक या वांछनीय है अथवा नहीं।

और इससे आगे एक अनुच्छेदके बाद वे मामलेकी सुनवाई होनेसे पूर्वतक सामूहिक दायित्व लादनेकी सलाह देते हैं। उन्होंने जो दूसरा कारण बताया है, वास्तवमें मुख्य तो वही है। वे कहते हैं:

पिछले कुछ वर्षोसे, और जहाँतक मैं जानता हूँ, १९१८ के प्रारम्भसे नडियाद जिलेके लोगोंके बीच सरकार के विरुद्ध लगातार एक आन्दोलन चलता रहा है और यह अपराध स्पष्टतः उसीका प्रत्यक्ष परिणाम है। इस जिलेके आन्दोलनका केन्द्र नडियाद है। पिछले साल सत्याग्रह आन्दोलनके समय यही शहर श्री गांधीका सदर मुकाम था; यह आन्दोलन वास्तवमें सरकारी लगानकी अदायगीके विरुद्ध छेड़ा गया था, और इस प्रकार इसका सीधा उद्देश्य जनताके मनमें, सरकारी अधिकारियों और स्वयं सरकारके प्रति जो सम्मान-भाव है उसकी बुनियाद खोखली कर देना था। और वास्तवमें उससे ऐसा हुआ भी।

ऐसा कहना भ्रामक है। मैं यह नहीं मान सकता कि मुझे जिस आन्दोलनका नेतृत्व करनेका सौभाग्य प्राप्त हुआ था, उसके कारण सरकारी अधिकारियों अथवा स्वय सरकारके प्रति जनताके सम्मान -भावकी बुनियाद रंच-मात्र भी कमजोर हुई। अगर लोगोंके राबनियों, तलाटियों और मुखियोंके भयसे मुक्त हो जानेको ही कलक्टर जड़ खोखली करना समझता हो तो बात और है। खेड़ा जानेपर मैंने देखा कि बहुत से लोग इन अदना अफसरोंके भयसे त्रस्त रहा करते थे, और मुझे यह तसदीक करते हुए खुशी होती है कि अब लोगोंके दिलोंसे उनका और उनसे ऊँचे अफसरोंका डर जाता रहा है। मैंने उन्हें आदर देने और डरनेके भेदको पहचाननेके लिए कहा। में कलक्टरको चुनौती देता हूँ कि लोगोंके निर्भय हो जानेकी बातको छोड़कर वे सिद्ध करें कि आन्दोलनमें भाग लेनेवाले एक भी आदमीने सत्ताके प्रति तनिक भी तिरस्कार प्रदर्शित किया। मेरी नम्र सम्मति में बिना सुनवाईके किसीको सजा दे देना अन्याय है। शिष्टता और शालीनताका तकाजा है कि कमसे कम नडियादके लोगोंको, और विशेष रूपसे पाटीदारों और बनियोंको, जिनका इस मामलेसे सम्बन्ध है, तथा बारेजडीके भूस्वामियोंको तलब करके यह प्रमाणित करनेके लिए तो कहा जाये कि उनपर २२,००० का जुर्माना क्यों न ठोका जाये। आदेशमें जुर्माने के रूपमें यही बड़ी रकम देनेको कहा गया है। इसके अतिरिक्त एक बड़े शहरके इनेगिने पियक्कड़ोंका दोष सारी आबादीपर मढ़ देना ईमानदारी नहीं कही जा सकती, जबकि सजाका मूल कारण अपराध न होकर जनताकी राजनीतिक गतिविधि ही है।

बनियोंसे सम्बन्धित अनुच्छेद तो इतना हास्यास्पद है कि उसपर नाराज तक नहीं हुआ जा सकता। किन्तु नडियादके कलक्टर महोदय वास्तविक स्थितिसे इतने अनभिज्ञ हैं कि मैं उनसे सहानुभूति प्रकट किये बिना नहीं रह सकता; क्योंकि मैं श्री केरको इतना तो जानता ही हूँ कि समझ सकूं कि वे जानबूझकर कोई अन्याय करना नहीं चाहते। जान पड़ता है, मेरे भी बनिया होनेके कारण उनका खयाल है कि मैंने श्री