पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 16.pdf/११५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
८३
पत्र : अखबारोंको

तलाटी और शाहसे मिलकर पाटीदारोंको सत्याग्रह करनेके लिए उकसाया था। लेकिन तथ्य यह है कि मुझे एक महीना पहले यह मालूम ही नहीं था कि श्री शाह बनिया हैं, और श्री तलाटीके बनिया होनेकी बात तो मुझे कलक्टर साहबके जिस पत्रकी हम चर्चा कर रहे हैं, उसे देखकर ही मालूम हुई। अभीतक तो मैं उन्हें पाटीदार समझ रहा था। और फिर मैं बनिया होनेके कारण ही दुनियाभर में सत्याग्रहका प्रचार नहीं करता फिरा हूँ। जिन लोगोंने सत्याग्रहके विकासमें जीवन-भर मेरा साथ दिया है, उनमें यूरोपीय और भारतके सभी हिस्सोंके लोग शामिल हैं। सत्याग्रह तो एक सैनिक प्रवृत्ति है, और बनियोंको ज्यादातर पैसा कमानेवाली जाति माना जाता है न कि किसी उद्देश्य विशेषके लिए लड़नेवाली जाति। इसलिए बनियोंमें तो मेरे सबसे कम सहयोगी रहे हैं। लेकिन इस व्यक्तिगत बातको लिखने में मेरा उद्देश्य यह दिखाना है कि अधिकारीगण हमसे कितनी बुरी तरह विलग रहते हैं। उनका यह विलग रहना उन्हें लोगोंको जानने-परखने के अवसरसे वंचित रखता है और इसीलिए वे लोगोंकी सच्ची सेवा भी नहीं कर पाते। आशा है, परमश्रेष्ठ गवर्नर महोदय अपनी सहज उद्यमशीलता और मनोयोगका परिचय देते हुए स्वयं इस मामलेकी जाँच करेंगे। मेरी नम्र सम्मति में नडियाद में किसी भी विशेष पुलिसकी आवश्यकता नहीं है, लेकिन अगर सरकार समझती हो कि सार्वजनिक सुरक्षाके लिए यह आवश्यक है तो मैं कहूँगा कि इस विशेष पुलिसका खर्च नडियादके पाटीदार और बनियों तथा बारेजडीके भूस्वामियों द्वारा दिये जानेका कोई कारण स्पष्ट नहीं किया गया है। दुःख अदायगीके सवालको लेकर नहीं है; दुःख तो इस बातका होता है कि लोगोंकी बात सुने बिना अकारण ही उनपर लांछन लगाया गया है।

[ अंग्रेजीसे ]

यंग इंडिया, ३०-८-१९१९}}

५३. पत्र : अखबारोंको[१]

लैबर्नम रोड

बम्बई

अगस्त ३०, १९१९

महोदय,

जिन भारतीयोंने सुदूर दक्षिण आफ्रिकामें भारतके लिए कार्य किया और उसकी सेवा की है, ऐसे भारतीयोंकी मृत्युकी खबर समय- समयपर जनताको देनेका मेरा दुर्भाग्य रहा है। श्री रुस्तमजीके एक तारसे मुझे अभी-अभी एक ऐसे ही योग्य भारतीयकी

  1. यह पत्र दाऊद मुहम्मदकी मृत्युपर लगभग सभी पत्रोंको भेजा गया था और हिन्दूमें १-९-१९१९ को, यंग इंडियामें ३-९-१९१९ को और इंडियन ओपिनियन में १७-१०-१९१९ को प्रकाशित हुआ था।