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सम्पूर्ण गांधा वाङ्मय

सकता है और जब छोड़ना चाहो तब छोड़ सकते हो। इसलिए जब-जब फुरसत मिले तब-तब यह काम हो सकता है। गरीब बहनें इस तरह अपने फालतू समयमें कातनेका काम करके हर समय थोड़ा-बहुत पैसा कमा सकती हैं और इससे देशके एक भारी और आवश्यक धन्धेको प्रोत्साहन मिलेगा। स्वदेशीका शीघ्रातिशीघ्र प्रचार करनेके लिए बहनोंके आग्रहकी जरूरत है। अबसे हम स्वदेशी वस्त्र ही पहनेंगी -- प्रत्येक बहनोंके ऐसा निश्चय कर लेना चाहिए। देशकी खातिर थोड़ा-बहुत सूत हमेशा कातेंगी -- यह दूसरा निश्चय भी प्रत्येक बहनको करना चाहिए। यदि दाहोदकी बहनें ऐसा करें तो अपनी जरूरतका सारा कपड़ा वे दाहोदमें ही तैयार कर सकती हैं। इससे दाहोदवासी बाहरसे कपड़ा लानेके झंझटसे मुक्त हो जायेंगे, इतना ही नहीं बल्कि बहुत सारा धन भी दाहोदकी बहनों और बुनकरोंको मिलेगा। इसके लिए बहुत थोड़े त्यागकी आवश्यकता है। अपने नगरमें मोटा-पतला चाहे जैसा भी कपड़ा बने, उसीको पहनकर हमें सन्तोष करना चाहिए तथा ईश्वरका उपकार मानना चाहिए और आलस तजकर जब-जब समय मिले तब-तब चरखके आगे बैठ जाना चाहिए। मुझे उम्मीद है कि प्रत्येक बहन इस कार्यमें उत्साहसे भाग लेगी।[१]

[ गुजरातीसे ]

नवजीवन, ७-९-१९१९

५५. भाषण : बुनकरोंकी सभामें[२]

दाहोद
अगस्त ३१, १९१९

मुझे यह देखकर बहुत दुःख हो रहा है कि कुछ अन्त्यज भाई दूसरोंसे अलग हटकर खड़े हैं। मैंने अपनी बुद्धिके अनुसार हिन्दूधर्मका अध्ययन किया है और यथासम्भव इसके सिद्धान्तोंपर आचरण करनेकी कोशिश भी करता हूँ। मेरी मान्यता है कि कोई भी राष्ट्र धर्मके बिना वास्तविक प्रगति नहीं कर सकता। लेकिन मैं यह बात नहीं मान सकता कि किसी जाति विशेषके स्पर्शको पाप मानना कोई धर्म है। मेरे विचारसे तो ईश्वरकी रची हुई किसी वस्तुके स्पर्शमें पापकी कल्पना करना ही पाप है। रूढ़ियाँ अच्छी बुरी हो सकती हैं किन्तु अन्त्यजोंका स्पर्श न करनेकी रूढ़िको में बुरा ही मानता हूँ। तनिक विचारनेसे यह स्पष्ट हो जायेगा कि केवल उनके पेशेके कारण उनका स्पर्श न करना अनुचित। अगर उनका पेशा बुरा है तो उन्हें इसे छोड़ देने- को कहिए। अगर हमारे पाखानोंको साफ करना पाप है तो उन्हें उनसे साफ मत

  1. सभाके अन्त में अनेक स्त्रियोंने तुरन्त कताई आरम्भ करनेका निश्चय किया और उनमें से कुछने जिन्हें कताई आती थी, दूसरोंको भी सिखानेकी इच्छा व्यक्त की।
  2. दोपहर बाद श्री गांधीने मेवाइसे आकर वहाँ बसे हुए बुनकरोंको सभामें भाषण दिया। श्रोताओंमें बहुत-से मुसलमान और अन्त्यज भी शामिल थे। भाषणको इस रिपोर्टका नवजीवनके ७-९-१९१९ के अंक में प्रकाशित गुजराती रिपोर्टसे भी मिलान कर लिया गया है।