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५६. भाषण : बुनकरोंकी सभा में

करवाइए। उस परिस्थिति में अपने शहरकी हालतकी कल्पना कीजिए। हर माता अपने बच्चेका पाखाना साफ करती है। वह सहर्ष ऐसा करती है और मानती है कि यह उसका कर्त्तव्य है। और हम सभी अपनी-अपनी माताओंके आगे सिर झुकाते हैं। इसलिए अगर मैं यह कहूँ कि भंगी लोग भी उसी श्रद्धाके पात्र हैं तो इसमें कोई अत्युक्ति नहीं होगी। अगर यह कहा जाये कि भंगी गन्दे रहते हैं, मांस खाते हैं और शराब पीते हैं, तो मैं कहूँगा कि हम ऐसे बहुत से लोगोंको छूते हैं जो मांस खाते या शराब पीते हैं और हम ऐसे पुरुषों और स्त्रियोंके साथसे भी इनकार नहीं करते जो अन्त्यजोंकी अपेक्षा कहीं अधिक गन्दे होते हैं। मैं अस्पृश्यता सम्बन्धी पूर्वग्रहको जाति भेदपर आधारित खान-पान और शादी-विवाहसे सम्बन्धित नियमोंके दर्जे में नहीं रखना चाहता। यह तो एक ऐसी बात है जिसमें मतभेद हो सकता है। हम अन्तर्जातीय भोजों और अन्तर्जातीय विवाहोंका समर्थन करनेको बाध्य नहीं हैं। लेकिन ईश्वरकी सृष्टिके किसी भी जीवको अस्पृश्य मानना तो मुझे पाप जान पड़ता है। मेरी यही कामना है कि दाहोदके हिन्दू इस पापसे मुक्त हो जायें।

कुछ मुसलमान भाई भी यहाँ आये हुए हैं। हम दोनों (यानी हिन्दू और मुसलमान) एक ही हैं। हमारे सुख-दुःख एक ही हैं। इसलिए हम दोनोंके बीच झगड़ेका कोई कारण नहीं है। हिन्दुओंका काम मुसलमानोंके बिना नहीं चल सकता और मुसलमानोंका हिन्दुओंके बिना। यही हमारा अनुभव है। अगर दोनों समुदायोंमें केवल एक- दूसरेकी सेवा करनेका भाव आ जाये तो आपसी कटुताकी भावना अपने-आप दूर हो जाये। हिन्दुओंको मुसलमानोंकी भावनाका आदर करना चाहिए और मुसलमानोंको हिन्दुओंकी भावनाका। अपने प्रति हमारा यही कर्त्तव्य है। दोनों सवाल -- अर्थात् दलित वर्गों और हिन्दू-मुस्लिम एकताका सवाल -- - स्वदेशीके अन्तर्गत आ जाते हैं; क्योंकि स्वदेशीकी सीख है, "पहले अपने पड़ोसियोंकी सेवा करो।"

लेकिन सच पूछिए तो मैं विषयसे जरा बाहर चला गया, हालाँकि एसा मैंने जान-बूझकर ही किया है। फिलहाल मेरा प्रमुख कार्य वस्त्रके सम्बन्धमें स्वदेशीका प्रचार करना है। जबतक हम स्वदेशीको उसके पूर्ण रूपमें स्वीकार नहीं कर लेते, हम आर्थिक स्वतन्त्रता प्राप्त नहीं कर सकते। पुरानी दस्तकारी भी दाहोदमें बिलकुल खत्म नहीं हुई है। दाहोद अभी अपने चतुर स्त्री-पुरुषों और कारीगरोंपर गर्व कर सकता है। आपको जितने कपड़े की जरूरत हो वह आप थोड़ी-सी मेहनतसे पैदा कर सकते हैं और मुझे आशा है, आप ऐसा करेंगे। मैंने जुलाहोंसे बातचीत की है। उन्होंने वादा किया है कि वे हाथकता सूत ही बुनेंगे। मुझे पूरा विश्वास है कि वे अपनी इस प्रतिज्ञाको निभायेंगे। दाहोदके जुलाहे दाहोदकी औरतों द्वारा काते सूतसे कपड़े बुनें और दाहोदकी जनता उस स्वदेशी वस्त्रको धारण करे, इससे बढ़कर शानदार बात क्या हो सकती है?

[ अंग्रेजीसे ]

यंग इंडिया, १०-९-१९१९