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५६. भाषण : अन्त्यजोंकी सभामें

दाहोद
अगस्त ३१, १९१९

श्री गांधी के अस्पृश्यता सम्बन्धी उद्गार लोगोंके हृदयों में उतर गये। श्री गांधीके आगमनसे पहले ही ब्राह्मण, वैश्य और मुसलमान सभी जातियोंके लोग अन्त्यजों की बस्ती में पहुँच गये थे और वहाँ भूमिपर एक-दूसरे से घुल-मिलकर बैठे हुए थे। अन्त्यजों द्वारा बुने गये सब वस्त्र बहुत सुन्दर ढंगसे प्रदर्शित थे। अन्त्यजोंको बस्तीमें श्री गांधी द्वारा दिये गये भाषणका सार निम्नलिखित है:

जब किसी अन्त्यज-बन्धुसे मेरी भेंट होती है या उनकी बस्तीमें जाकर उनसे मिलनेका अवसर मिलता है तो मुझे बहुत खुशी होती है। मेरा नियम रहा है कि मैं जिस बातपर विश्वास करता हूँ, उसपर अमल करूँ। इसलिए अन्त्यजोंके सम्पर्क में आना और उन्हें स्पर्श करना मेरे लिए तो एक पदार्थ-पाठ है। अन्त्यजोंसे मेरी प्रार्थना है कि वे धीरज रखें। धीरे ही सही, हिन्दू-समाजका वातावरण निश्चित रूपसे बदल रहा है। कट्टर हिन्दू भी अब अस्पृश्यताके पापको समझने लगे हैं और लगभग निश्चित है कि यह घोर बुराई ज्यादा दिनोंतक नहीं टिक पायेगी। मैं यह भी चाहता हूँ कि अन्त्यज अपनी बुराइयोंको दूर करनेके लिए जोरदार कोशिश करें। पिछले वर्ष जब मैं गोधरा गया था तब बहुतसे अन्त्यजोंने शराब पीने की आदत छोड़नेका निश्चय किया था। मैं चाहता हूँ कि यहाँके अन्त्यज भी उनका अनुकरण करें। मुझे आशा है कि आप सब लोग बुनाईके काम में पूरा उत्साह दिखायेंगे और मुझे जो वचन दिया है उसीके अनुसार काम करेंगे। हाथसे कते सूतको बुननेमें कठिनाई होती है, लेकिन अगर आप सफलताओंसे विचलित हुए बिना, बुनाई करते रहे तो मुझे भरोसा है कि आप अपनी दशा सुधारनेके साथ ही देशकी उन्नति भी करेंगे। यहाँके प्रसिद्ध व्यापारी श्री के० एन० देसाईने आप लोगों को हाथकता सूत देना स्वीकार कर लिया है। आप लोग जो कपड़ा बुनेंगे उसे वे उचित मूल्यपर आपसे खरीद लेंगे ।

[ अंग्रेजीसे ]

यंग इंडिया, १०-९-१९१९