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५७. दोषी नहीं, अन्याय के शिकार

रामनगरके मुकदमों के बारेमें हमारे लाहौरस्थित संवाददाताने जो विचार प्रकट किये थे हमारे पाठक उन्हें भूले न होंगे। इन मुकदमोंसे सम्बन्धित बहुतसे कागजात मेरे पास हैं तो जरूर, परन्तु जबतक मुझे कमसे-कम फैसलेका पाठ न मिल जाये तबतक उनके सम्बन्ध में मैं अपने विचार पाठकोंके सामने रखनेके लिए तैयार नहीं था। अब वे पाठकोंके सामने प्रस्तुत हैं। लाला करमचन्दकी ओरसे उनकी बूढ़ी माता गंगादेवीने एक समर्थ याचिका प्रस्तुत की है जिसमें उनके पुत्र देवीदासका एक यथातथ्य पत्र है। पत्रमें कहा गया है कि अभियुक्त 'अपराधी नहीं हैं, शिकार' हैं। ध्यान रहे ये लाला करमचन्द उस तरुण करमचन्दसे अलग हैं- जिसे फाँसीको सजा दी गई थी। यदि लाला करमचन्दके पुत्रका यह सीधा-सादा विवरण सच हो, मेरा खयाल है, उसे गलत माननेका कोई कारण नहीं है -- तो पूरीकी-पूरी कार्रवाई एक तमाशामात्र थी। वह अदालत में मुकदमेकी बाकायदा सुनवाई न होकर उसका मजाक थी। अभियुक्तों की संख्या २८ थी, और उन सबके मुकदमोंकी सुनवाई एक साथ हुई। सारी कार्यवाही एक ही दिनमें समाप्त हो गई। उसी एक दिनमें बचाव पक्षके कुल मिलाकर १५० गवाहोंके बयान दर्ज किये गये। अभियुक्तोंको सरकारी गवाहोंके मुँहसे ही मालूम हो पाया कि उनपर क्या-क्या अभियोग हैं,-- उन्हें इस बारे में कोई इतला बाजाब्ता नहीं दी गई थी। न्यायाधीश इतने गवाहोंके बयान एक दिनमें किस प्रकार ले सका यह बात समझ में नहीं आ रही है। गवाहोंके बयानों अथवा अभियुक्तोंके वक्तव्योंकी नकलोंके लिए बार-बार अर्जियाँ भेजनेपर भी वे प्राप्त नहीं हुई। इससे तो यही मालूम होता है कि बयान दर्ज ही नहीं किये गये थे।

इन मुकदमोंको इतनी जल्दी क्यों निपटा डाला गया? अभियुक्तोंको कथित अपराधके आठ दिन बाद गिरफ्तार किया गया था। और उस समयतक सारे पंजाब में पूर्ण शान्ति स्थापित हो चुकी थी। मुकदमेकी सुनवाई कथित अपराध होनेके पाँच सप्ताह बाद २२ मईको हुई थी। इसलिए उन मुकदमोंको इस प्रकार बेहूदे ढंगसे झटपट निपटा देनेकी कोई वजह न थी ।

१७ अप्रैलको पुलिसके एक अधिकारीने अपने रोजनामचेमें लिखा कि आंशिक हड़तालको छोड़कर सर्वत्र शान्ति थी। समाचारपत्रों में यह ठीक ही कहा जा रहा है कि अगर कोई गम्भीर अपराध हुआ होता तो रोजनामचेमें उसका जिक्र जरूर होता। कथित अपराध ऐसा न था जिसे लुक-छिपकर किया जा सके। कहा जाता है कि वह अपराध खुले तौरपर किया गया था। कमसे कम यहाँ तो इस्तगासेकी दास्तानपर शक करने के लिए काफी मसाला मौजूद है। परन्तु न्यायाधीश महोदय के दिलमें कोई सन्देह उत्पन्न ही नहीं हुआ।

इस्तगासेने जो बयान दिये हैं उनमें एक बार कुछ कहा गया है और दूसरी बार कुछ और। एक जगह कहा गया है कि महामहिम सम्राट्के पुतलेको जलानेके लिए ५