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डॉक्टर सत्यपालका मामला

अधिकारियोंने उनके भाषणोंकी गलत रिपोर्ट पेश की हैं और यह भी कहा है कि जब- जब वे बोले हैं तब-तब उन्होंने सत्य और अहिंसाके सिद्धान्तपर अमल करनेको ही कहा है और लोगोंको बराबर यह सलाह दी है कि वे क्रोधवश किसी प्रकारकी हिंसात्मक कार्रवाई न करें।

डॉक्टर सत्यपालके पिताने जो साहस और दृढ़तापूर्ण पत्र मेरे नाम भेजा है। उसे मैंने जान-बूझकर नहीं छापा। उस पत्र में उन्होंने मुकदमेके सम्बन्धमें अपने निजके विचार प्रकट किये हैं। परन्तु उस पत्रमें आये हुए कुछ तथ्योंको उद्धृत करनेका लोभ मैं संवरण नहीं कर सकता। उदाहरणार्थ, वे कहते हैं:

सरकारका इरादा पहले तो डॉ० किचलू और डॉ० सत्यपालपर मुकदमा चलानेका न था। वे १० अप्रैलको निष्कासित कर दिये गये थे; इसलिए अमृतसर के मजिस्ट्रेट की अदालतमें मुखबिरने जो अपराध-स्वीकृतिका बयान दिया था उसमें डॉक्टर सत्यपाल और डॉ० किचलूको नहीं फँसाया गया था। परन्तु सरकारका इरादा बदलते ही मुखबिरसे एक अतिरिक्त वक्तव्य जिसे 'सुधार' के नामसे पुकारा गया, मँगवा लिया। उसमें इन दोनोंको दोषी बताया गया था।

यदि यह आरोप सच है तो वह सरकारी पक्षके ऊपर बहुत बड़ा लांछन है और सारीकी सारी अदालती कार्रवाईको प्रभावहीन कर देता है।

इसके अतिरिक्त उस पत्रमें यह भी लिखा है कि:

डॉक्टर सत्यपालपर २९ मार्चको सार्वजनिक सभाओंमें भाषण देनेके सम्बन्धमें प्रतिबन्ध लगा दिया गया था। आयुक्तोंने डॉक्टर सत्यपालको इस अपराधमें कि वे राजद्रोह फैलानके निमित्त संगठित किये गये षड्यंत्रमें शामिल थे, आजन्म कालेपानीकी सजा दी है। परन्तु एक अत्यन्त विचित्र बात तो यह है कि ३० मार्चको होनेवाली सार्वजनिक सभामें भाषण देना तो दूर रहा वे वहाँ हाजिरतक न थे यद्यपि न्यायाधीश लोगोंने यही माना है कि उन्होंने उस सभामें भाषण दिया था। और कहा जाता है इसी सभामें - उस षड्यंत्रको कार्यान्विंत करने के उद्देश्यसे राजद्रोहका प्रचार किया गया था।

यह सच है कि ३० मार्चको होनेवाली सभाके सम्बन्धमें प्रकाशित पर्चेपर डॉक्टर सत्यपालके हस्ताक्षर थे। यह २८ मार्चकी बात है। परन्तु यदि कोई षड्यन्त्र था भी तो २८ मार्चतक नहीं था, ३० मार्चको भले ही रच लिया गया हो। गत जनवरी और फरवरी मासमें प्लेटफॉर्म टिकट सम्बन्धी आन्दोलनको, जिसके आयोजक और संचालक डॉक्टर सत्यपाल थे, निर्लज्जतापूर्वक इस मुकदमेमें जोड़ दिया गया ताकि उनपर चलाया गया मुकदमा उनके खिलाफ जाये। यह आन्दोलन बिलकुल निर्दोष था और वह सफल भी हुआ था और इसके सम्बन्धमें स्टेशनके अधिकारियोंने डॉक्टर सत्यपालके प्रति अपनी कृतज्ञता भी व्यक्त की थी।