पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 16.pdf/१२४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
९२
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

उस पत्रका अन्तिम अंश यह है:

आपकी जानकारीके लिए सूचित करना चाहता हूँ कि सन् १९१५ में डॉक्टर सत्यपालने फौजी नौकरीके लिए प्रार्थना-पत्र भेजा था। उनको अस्थायी रूपसे आई० एम० एस० में लेफ्टिनेन्टका अस्थायी कमीशन भी मिल गया था। उनकी तैनाती अदनमें की गई। वहाँ उन्होंने अत्यन्त कठिन परिस्थितियोंमें रहकर एक सालतक अपने कर्त्तव्यका पालन किया और उनके कामसे अधिकारीगण सन्तुष्ट भी थे। इन अफसरोंने डॉ० सत्यपालको नौकरीसे अलग होते समय प्रशंसात्मक प्रमाणपत्र प्रदान किये थे। सन् १९१८ में उन्होंने अपनी सेवाएँ पुनः अर्पित कीं परन्तु किसी कारण उन्हें लिया नहीं जा सका। जब भारतमें इनफ्लुएंजा और मलेरियाका प्रकोप हुआ तब उन्होंने अपनी सामर्थ्यभर अपने नगर-निवासियों की सेवाकी और उनके कष्टोंको यथासम्भव दूर किया। उन्हें गैर-सरकारी सनद प्रदान की गई। सरकार तथा जनताकी ऐसी सराहनीय सेवा करनेका उचित पुरस्कार भला इसके सिवाय और क्या हो सकता था कि उनपर दफा १२४ के अन्तर्गत मुकदमा चलाया जाये।

जैसा कि मैं ऊपर कह चुका हूँ, लाहौर और अमृतसर के मुकदमे ऐसे मुकदमे नहीं हैं। जिनमें दी गई सजामें कमी कर देना कोई खूबीकी बात कही जा सके या जिससे लोगों को सन्तोष हो सके। ये प्रतिष्ठित अभियुक्त दयाकी भीख नहीं माँग रहे हैं। वे न्याय चाहते हैं और जनताको इस न्यायकी आग्रहपूर्वक माँग करनी चाहिए। सजाओंमें जो कमी की गई है वह धोखेकी टट्टी है, फिर वह भले ही बिना किसी खास इरादेके क्यों न की गई हो। उसके परिणामस्वरूप जनताको गाफिल नहीं हो जाना चाहिए। जबतक लाहौर और अमृतसरके नेताओंकी पूरी तरहसे और सम्मानपूर्ण रिहाई नहीं हो जाती, तब-तक शान्ति और सन्तोषका वातावरण उत्पन्न हो ही नहीं सकता।

[ अंग्रेजीसे ]

यंग इंडिया, ३-९-१९१९

५९. मथुरादास त्रिकमजीको लिखे पत्रका अंश

आश्रम
भाद्र सुदी ९, सितम्बर ३, १९१९

... यदि हम सींचते रहेंगे तो किसी-न-किसी दिन फसल उगेगी ही। अज्ञान भी एक तरह का अन्धकार है, एक प्रकारका असत्य है। इसलिए ज्ञान अथवा सत्यके सामने वह टिक नहीं सकता।

[ गुजरातीसे ]

बापुनी प्रसादी