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६०. दक्षिण आफ्रिकामें भारतीय

दक्षिण आफ्रिकाके प्रश्नको लेकर जो शिष्टमण्डल[१] श्री मॉण्टेग्युसे मिला उसे जो जवाब दिया वह आश्वासनपूर्ण है। यह बहुत सन्तोषकी बात है कि वे आयोग में भारतीयोंको प्रतिनिधित्व दिलायेंगे। लेकिन शर्त यही है कि भारतीयों का प्रतिनिधित्व एशियाई विरोधी पक्षके प्रतिनिधित्वके बराबर होना चाहिए, और यह भी कि आयोगको ब्रिटिश भारतीयोंके मौजूदा अधिकारोंको कम करनेका कोई अधिकार न हो। और यह शर्त भी है कि हाल ही में पास हुआ एशियाई कानून स्थगित रहे तथा आयोगको उसे वापस ले लेने की सिफारिश करनेका अधिकार दिया जाये। साम्राज्यीय भारतीय नागरिक संघका दूसरे स्तम्भमें प्रकाशित प्रस्ताव कुछ हमारे सुझावों-जैसा ही है।

पिछले वायदे, समानता तथा न्यायके विचार, दक्षिण आफ्रिकाके भारतीय अधिवासियोंका अनुकरणीय आचरण तथा पिछले दक्षिण आफ्रिकी युद्ध में, जूलू-विद्रोह काल में और यूरोपीय युद्धमें भारतीयों द्वारा दिया गया सहयोग, ये सारी बातें उनके मौजूदा अधिकारोंको कम करने के विरुद्ध एक जोरदार पक्ष प्रस्तुत करती हैं। भारतीयोंके विरुद्ध यूरोपीय व्यापारियों में व्याप्त तीव्र पूर्वग्रह ही जिनका एकमात्र औचित्य है, ऐसे प्रतिबन्धों को पूरी तरह हटाने की बात यदि आयोग न सोचे तो भी न्याय करनेके लिए उसे इन प्रतिबन्धों में ढील करनेकी सिफारिश करनी ही होगी। परन्तु ऐसा निराधार पूर्वग्रह भी एक अयोग्य और भ्रष्ट प्रणाली वाली सरकारके सामने कारण रूपमें पेश किया जा सकता है। साम्राज्यीय सरकारको वास्तवमें साम्राजिक होनेके लिए कुछ विशेष परिस्थितियों में, दुर्बल हितोंके संरक्षणके लिए प्रभावशाली तौरपर दखल देनेकी ताकत होनी चाहिए। अतएव भारतीय जनताके विचारमें श्री मॉण्टेग्युकी यह अभ्युक्ति ग्राह्य नहीं हो सकती कि राजनीतिक दृष्टिसे 'वीटो' (निषेधाधिकार) का प्रयोग करना सम्भव नहीं है। 'वीटो' मात्र एक नैतिक नियन्त्रण ही नहीं है, अपितु उसे कुछ विशेष परिस्थितियों में अनाचार और अन्यायोंपर एक बहुत ही वास्तविक और ठोस नियन्त्रण भी होना चाहिए। साम्राज्य संगठित रहे इसके लिए कुछ ऐसे मूल सिद्धान्त होने चाहिए जिनसे अलग हटने का साहस साम्राज्यका कोई अंग न करने पाये। जैसा कि लगता है, यदि श्री मॉण्टेग्युको विश्वास है कि एशियाई कानून अन्याय है और वह ब्रिटिश संविधानके सिद्धान्तोंके विरुद्ध है तो उसपर निषेधाज्ञा लागू करने में क्या कठिनाई है? ज्यादासे ज्यादा इससे यह हो सकता है कि दक्षिण आफ्रिका साम्राज्यीय साझेदारीसे शायद अलग हो जाये। निश्चय ही यह हजार गुना बेहतर होता कि दक्षिण आफ्रिका साम्राज्यका सदस्य न रहे बनिस्बत इसके कि वह समूचे साम्राज्यीय ताने-बानेको दुषित करे और नष्ट कर दे। यह असंख्य गुना बेहतर होगा कि साम्राज्य में जितने साझेदार हैं उससे कम

  1. जो श्री सुरेन्द्रनाथ बनर्जीके नेतृत्वमें २८ अगस्तको मिला था। "दक्षिण आफ्रिका के भारतीय ", ७-९-१९१९ भी देखिए।