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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

संख्या में साझेदार हों परन्तु सभी साथ-साथ उत्थानकी एक ही दिशाकी ओर अग्रसर हों, बजाय इसके कि कानूनसम्मत जब्तियों और अन्य प्रकारके अनैतिक कार्यों द्वारा साम्राज्य अपने ही विनाशके बीज बोये। और फिर स्वार्थ, लोभ और अन्याय ये कायरताके ही सहचर हैं। इस आशंकाका तो कोई कारण नहीं कि शाही 'वीटो' के स्वस्थ और समयोचित प्रयोगसे दक्षिण आफ्रिकामें और अधिक हलचल पैदा होगी। यदि मेरी याददाश्त सही है तो उस वक्त जब स्वर्गीय श्री चेम्बरलेनने आस्ट्रेलियाई प्रवास प्रतिबन्धक अधिनियम, जिसमें एक जातिमूलक रुकावट थी, के विरुद्ध निषेधाधिकारका प्रयोग करनेका साहस किया था, तब स्वर्गीय सर हेनरी पार्क्सने [साम्राज्यसे] पृथक् हो जाने या कुछ ऐसा ही करनेकी धमकी दी थी।

परन्तु मैं यह स्वीकार करता हूँ कि जबतक अन्य नरम उपाय सुलभ हैं तबतक 'वीटो' करनेका अन्तिम और तीव्रतम उपाय काममें नहीं लाना चाहिए। निःसन्देह 'वीटो' [चिकित्साकी दृष्टिसे दागकर उठा हुए] एक ऐसे बड़े छालेकी तरह है जिससे क्षणिक ही सही, लेकिन बहुत ही भयंकर पीड़ा होती है और इसलिए इसका बहुत कम प्रयोग करना चाहिए। प्रस्तावित आयोगमें यदि भारतीय प्रतिनिधित्व सशक्त हो तो वांछित उद्देश्य पूरा करनेमें वह पर्याप्त सक्षम होगा। अतएव फिलहाल सबसे अच्छा यही होगा कि जनमतका आग्रह एक शक्तिशाली आयोगके लिए हो, जिसको ऐसे निर्देश हों कि वह [भारतीयोंके] समुचित संरक्षणको ध्यान में रखकर चले।

यह देखकर हमें बहुत राहत हुई कि श्री मॉण्टेग्यु 'पारस्परिकता' (रेसिप्रोसिटी) के उस जालमें नहीं फँसे जिसे सर विलियम मेयरने शायद बहुत जल्दी-जल्दी सुझाया था। श्री बनर्जी[१] उसमें इतनी आसानीसे फँस गये, इसका मुझे दुःख है। 'पारस्परिकता' जैसे सुन्दर शब्दका प्रयोग इतने बुरे अभिप्रायके लिए करना तो भाषाका हनन करना है। यदि हमें यह खराब नीति अपनानी ही पड़े तो हमें कमसे कम उसका सही नाम जानना चाहिए, और सही नाम 'पारस्परिकता' नहीं, बल्कि 'बदला' है। व्यक्तिगत रूपसे मैं बदले में कतई विश्वास नहीं करता। यह हमेशा अन्तमें पलटकर दूनी शक्तिसे बदला लेनेवालेपर ही चोट करता है। परन्तु जैसा कि दक्षिण आफ्रिकाके हमारे देशभाइयोंके हितोंकी महत्त्वपूर्ण सेवा करनेवाले 'टाइम्स ऑफ इंडिया' ने ठीक ही कहा है, बदलेकी नीतिसे, जिसे गलतीसे 'पारस्परिकता' कहा जाता है, कोई उद्देश्य पूरा नहीं होगा। "इसका प्रमुख दोष इसकी नितान्त निरर्थकता है," और यदि हमने कभी भी इस अत्यन्त अव्यावहारिक नीतिको अपनाया तो दक्षिण आफ्रिकाका एशियाई विरोधी दल तो उसका सन्तोषपूर्वक स्वागत करेगा, लेकिन वहाँके डेढ़ लाख भारतीय जिनका अस्तित्व ही दाँवपर लगा हुआ है, हमें कोसेंगे। जब दाँवपर लगी चीज अच्छी हो तो कोई बदला ले भी ले। परन्तु जब आदमी-औरत दाँवपर लगे हों उस समय बदलेकी बात सोचना ही भयानक है। दक्षिण आफ्रिकाके डेढ़ लाख भारतीयोंको वहाँसे निकाला जाये -- क्योंकि वास्तवमें एशियाई विरोधी दलका उद्देश्य यही है -- या उन्हें भूमिदास बना डाला जाये और बदलेमें यदि भारत दक्षिण आफ्रिकासे आनेवाले एक जहाज-भर

  1. सर सुरेन्द्रनाथ बनर्जी ( १८४८-१९२५ ); सुप्रसिद्ध राजनीतिज्ञ व वक्ता।