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पत्र : अखबारोंको

सामानको वापस कर दे तो उससे दक्षिण आफ्रिकामें हमारे देशभाइयोंको क्या राहत मिलेगी, या यदि दक्षिण आफ्रिकाको कुछ टन कोयला भेजने से इनकार कर दे, यदि इक्के-दुक्के दक्षिण आफ्रिकी सैलानीको भारतमें न आने दें तो उन्हें क्या राहत मिलेगी? १८९६ या ९५ में स्वर्गीय सर विलियम विल्सन हंटरने बिल्कुल स्पष्ट शब्दों में इस प्रश्नपर प्रकाश डाला था। दक्षिण आफ्रिकामें ब्रिटिश भारतीयोंके इसी सवाल-पर लिखते हुए उन्होंने कहा था कि उन्हें महामहिमकी डोमिनियनमें ब्रिटिश नागरिकका पूरा दर्जा हासिल होना है या नहीं? यह सवाल बदला या पारस्परिकता जो भी कहें -- अस्थायी नीति से हल नहीं किया जा सकता। यह सवाल तो सिर्फ सही राजनीतिक नेतृत्व और हमारे अपने सही आचरण द्वारा ही हल किया जा सकता है।

[अंग्रेजीसे]

यंग इंडिया, ६-९-१९१९

६१. पत्र : अखबारोंको[१]

लैबर्नम रोड
बम्बई
सितम्बर ६, १९१९

सम्पादक

'बॉम्बे क्रॉनिकल'

महोदय,

कुछ समय पूर्व मुझे फिरंगी महलवाले मौलाना अब्दुल बारी साहबकी मेहमानी करनेका सौभाग्य मिला था। भारतके इस भागमें रहनेवाले हम लोग, मुसलमानोंको छोड़कर, इस महान् और अच्छे आदमीके बारेमें कुछ नही जानते। वे इस्लामके एक प्रमुख धार्मिक आचार्य हैं और भारत भर में सर्वत्र उनके हजारों अनुयायी हैं। उनका आडम्बरहीन और सच्चा स्वभाव उनके विरोधियोंको भी, जब वे उन्हें समझने लगते हैं, मित्र बना देता है। उन्होंने और मैंने पारस्परिक हित सम्बन्धी अनेक समस्याओंपर बातचीत की जिसके दौरान मैंने उन्हें बताया कि जहाँतक मैं हिन्दुओंकी राय समझ सका हूँ, मुझे जरा भी सन्देह नहीं कि वह टर्कीके दावोंपर न्यायपूर्ण निर्णय उपलब्ध करानेके कठिन काममें पूरी तरहसे मुसलमानोंके साथ होगी। यद्यपि यह काम कठिन है क्योंकि सवालको कितनी ही यूरोपीय उलझनोंसे इतना दबा दिया गया कि मित्रदेश शायद दुर्बलताके क्षणोंमें उस सवालको मात्र न्यायके आधारपर हल नहीं कर पायेंगे। उन्होंने मुझसे पूरी गम्भीरताके साथ, और निस्संकोच रूपसे कहा कि "यदि

  1. लगता है यह पत्र सामान्यतया सभी समाचारपत्रों में प्रकाशनार्थं भेजा गया था। १०-९-१९१९ के यंग इंडियाने इसे टाइम्स ऑफ इंडियासे उद्धृत किया था।