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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हम लोग आप हिन्दुओंकी मदद नहीं करते और आपके प्रति न्याय नहीं करते तो कमसे-कम मैं तो अपने सहधर्मियोंके लिए आपकी सक्रिय मदद न माँग सकता हूँ और न ही ले सकता हूँ।" मैंने कहा "आप एक क्षणके लिए भी ऐसा न सोचिए कि मैंने किसी सौदे की भावना से बात की है। आपने जो विचार अभी-अभी व्यक्त किये हैं उनके पीछे जो प्रश्न आपके मनमें है, यानी गोवधका प्रश्न, वह अपने गुणदोषके आधारपर सुलझाया जा सकता है और समाधानकी तबतक प्रतीक्षा कर सकता है जबतक कि हमारे बीच सच्ची मैत्री परिपुष्ट न हो जाये ताकि हम निष्पक्ष रूपसे उसपर बातचीत कर सकें।" जैसे ही मैंने वाक्य समाप्त किया वे तुरन्त बीचमें बोल पड़े कृपया मुझे क्षमा करें। मैं जानता हूँ कि आप इसलिए मदद करना चाहते हैं कि हमारा उद्देश्य न्यायोचित है और हम एक ही मिट्टीकी सन्तान हैं, इसलिए नहीं कि आप कोई प्रतिदान चाहते हैं। परन्तु क्या हमारा अपने प्रति एक कर्त्तव्य नहीं है? इस्लाम यदि हमेशा लेता रहा और कभी दिया नहीं तो वह नष्ट-भ्रष्ट हो जायेगा। सबसे पहले जरूरी तो यह है कि उसमें सचाई हो। हमारे धर्मका आभिजात्य (उन्होंने 'खान-दानी' शब्दका प्रयोग किया) हमसे अपेक्षा रखता है कि अपने पड़ोसियोंके प्रति हम पूरी तरहसे न्याय करें। यहाँ प्रश्न है सेवा लेनेका। हिन्दू हमारे विश्वासकी सही परख अपने प्रति हमारे आचरणसे करेंगे। इसीलिए मैं कहता हूँ कि "यदि हम आपसे लें तो हमें आपको देना भी जरूर चाहिए।" एक ऐसे मौलानासे, जिसमें ज्ञान, सच्ची बुद्धिमत्ता और विनम्रता है, हुई विलक्षण बातचीतका मैंने केवल थोड़ा-सा नमूना दिया है। मौलाना अपनी बातके सच्चे रहे हैं। मैं जानता हूँ कि इस बातचीतके बाद वे बराबर अपने अनुयायियों और मित्रोंको गो-वध न करनेका उपदेश देते रहे हैं और आज इस्लाम धर्मके एक सबसे पवित्र दिन उन्होंने हिन्दुओंका ध्यान रखा है और निम्नलिखित तार मुझे भेजा है:

"हिन्दू-मुस्लिम एकताके उपलक्ष्यमें इस बकरीदको फिरंगी महलमें गायकी बलि नहीं होगी -- अब्दुल बारी।"

इस तारका मैंने निम्नलिखित जवाब भेजा है:

"आपके त्यागके महान् कार्यसे प्रसन्नता हुई। कृपया ईद मुबारक स्वीकार करें।"

भगवान् करे कि हम सबमें -- हिन्दू, मुसलमान, पारसी, यहूदी सभी जातिके लोगों में दान, न्याय और उदारताके गुण हों। निश्चय ही इससे संसारकी बेहतरी होगी।

आपका,
मो० क० गांधी

[अंग्रेजीसे]

बॉम्बे क्रॉनिकल, ९-९-१९१९