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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

इन कठिनाइयोंके बावजूद मुझे यह स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि मुझे भारतको ऐसा कुछ देना है जो औरोंके पास उतने ही प्रमाणमें नहीं है। बहुत कोशिशोंके बाद मैंने अपने जीवनमें कुछ सिद्धान्त स्थिर किये हैं और उनपर अमल भी किया है। उससे मुझे सुखकी जो अनुभूति हुई वह दूसरोंमें दिखाई नहीं दी। अनेक मित्रोंने इस बात का समर्थन किया है। भारतको अपने इन सिद्धान्तोंका परिचय देने और उसे अपने सुख की अनुभूति कराने की मेरे मन में तीव्र अभिलाषा है। इसका एक साधन समाचारपत्र है।

सत्याग्रह मेरे लिए कोरी किताबी चीज नहीं है, वह तो मेरा जीवन है। मुझे सत्यके सिवा किसी और चीज में कोई दिलचस्पी नहीं है। मुझे इस बातका पूरा विश्वास है कि असत्य से देशका कभी भी हित नहीं हो सकता। लेकिन कदाचित् असत्य से तात्कालिक लाभकी उपलब्धि होती हो तो भी हमें सत्यका त्याग नहीं करना चाहिए, ऐसी मेरी दृढ़ मान्यता है।

मैं सयाना हुआ तभी से मैं इस सत्यकी शोधमें लगा हुआ हूँ। इसकी खोजमें चालीस वर्ष व्यतीत हो गये हैं, फिर भी मुझे मालूम है कि मैं अभीतक मन, वचन और कर्ममें पूर्ण सामंजस्य स्थापित नहीं कर पाया हूँ।

उससे क्या? हम आदर्शको अपने आचरण में जितना अधिक उतारनेका प्रयत्न करते हैं वह हमसे उतना ही दूर होता दीख पड़ता है। ऐसी स्थितिमें उसको और भी दृढ़तासे पकड़े रहने में ही पुरुषार्थ है। हमारे पैर लड़खड़ायेंगे, हम गिरेंगे तो भी उठेंगे। हमारे लिए इतना ही पर्याप्त है कि हम पीछे न हटें अथवा पीठ न दिखायें।

इस खोज के दौरान मुझे अनेक रत्न मिले हैं। उन्हें मैं भारत के सम्मुख रखना चाहता हूँ। 'नवजीवन' उन्हें प्रकाशमें लानेका एक माध्यम है।

यह खोज करते हुए मैंने देखा कि कानूनोंका स्वेच्छापूर्वक पालन करना हमारा फर्ज है। लेकिन इस फर्जको अदा करते हुए मैंने यह भी देखा कि जब कानून असत्यका पोषण करे तब उसकी अवहेलना करना भी कर्त्तव्य है। कानूनका यह [कर्त्तव्य रूप] भंग किस तरह किया जाये? उत्तर है: सत्यका पालन करते हुए हम कानूनके भंगसे मिलनेवाले दण्डको स्वीकार कर लें। इसका नाम कानूनका सविनय भंग है। इसको कौन लोग करें, कौनसे कानून असत्यका पोषण करनेवाले होते हैं। -- इसका निर्णय मात्र अमुक नियम बनाकर नहीं किया जा सकता। यह तो अनुभवसे ही सम्भव हो सकता है। और इसके लिए समय तथा साधन चाहिए। यह साधन 'नवजीवन' बने।

प्रतिकूल वातावरण में भारी संघर्ष करते हुए भी सत्याग्रही अधिकारी-वर्गके साथ मधुर सम्बन्ध बनाये रख सके थे। क्योंकि सत्याग्रह में रोष अथवा द्वेषको अवकाश नहीं है। सत्यकी छाप विरोधी पक्षपर पड़ती है। इसलिए उसके [विरोधी पक्षके] मनमें अविश्वास नहीं रहता। परिणामस्वरूप संघर्ष करते हुए भी दोनों पक्ष एक दूसरेके प्रति आदरकी भावना और मिठास बनाये रख सकते हैं। उदाहरणों और दलीलोंके द्वारा 'नवजीवन' बतायेगा कि भारत में भी, अधिकारी-वर्गके साथ जहाँ मतभेद हो वहीं, लड़ते हुए भी जिन विषयोंपर हमारा मतभेद न हो उनमें उन्हें मदद दे सकते हैं और उनसे मदद ले सकते हैं।